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________________ ॥ श्रीलोकप्रकाशे प्रथमः सर्गः ।। करो, तमारी प्रार्थनाथी महिमाशालि पाठप्रभुढे विव ते तमने आपशे, " ते बिपना चरणकमळना स्तात्र अल सिंघवाथी तमासं सर्व सैन्य मूछा त्याग करी उत्थित थशे." त्यारे कृष्णायासुदेवे नेमिकुमारने कछु, है यम् । वण दिवस मुधीई जो ध्यानमां लीम थाउं तो सैन्य कोण रक्षण करशे ? आषा कृष्णनां दयाजनक पचनो सांभली, नेमिकुमारे है हरि । शत्रु संकटमाथी तारी सेनानुं हुं रक्षण करीश. तमे निश्चिन्त पाओ !! श्रीनेमिकुमारना अनुग्रहषचनो सांभळी हर्षथी उत्साहित हृदयघाळा कृष्णयासुदेव अप्रमतपःपूर्वक पौषधशालामा पौषध अङ्गीकार करी पकामध्याने धरणेन्द्रनी आराधना करया लाम्या, पघामां अही पण प्रभातकाले जेटलामा जरासन्ध हर्षपूर्ण हृदयधी जराथी व्यास थयेलु मूzितावस्थ शत्रु सैन्यने जाणी चतुरङ्गसेनाधी परिवरेलो बाणोनो घरसाद वरसावतो यादयोने हणवा तत्पर थयो सेटलागं इन्द्र मोकलेला धीनेमिकुमारना ग्थना सारथी मातलिग श्रीनेमिकुमारनी आमाथी यादव मैन्यनी फरता चारे दिशामा संघनकवायुनी माफक स्वच्छन्दपणे नेमिकुमारना रथने भमाझ्यो रथमा बॅटेला श्रीनेमिकुमार पण एकदम चोनरफ याणो छोडवा लाग्या. जरासन्धपक्षना ग़जाओ भावनी वाणपंक्ति जोर से युद्धमा जाणे मध्यस्थ साझिओ ज होय नहिं शुं ? तेम दूर उभा रहा अहो ! हो ! हो ! आश्चर्यजनक तीर्थकर परमात्मानी सवयता के जे प्रभ हजु नो गृहस्थावासमा छे, आरंभथी विरक्त नथी, रणसंग्राममां शनी सामा उमा छे, बाणोनो वरसाद वरसावे छ, छतां पण प्रभुप शत्रुसैन्यना सुभटोमांना कोइना यत्रतर, कोइना मुकुट, कोइना ध्वज के कोइना बाण विगेरे निर्जीव पुदलोनो मात्र चमत्कार देखाइवानी खातर छेद कर्यो, पण कोइ जीवना प्राणोनो वियोग करायचो ते तो दर ज रह्यो। परन्तु किनिन्मात्र शत्रुमन्यमां दुःख कयु नहीं, वळी केटलाको कहे के जे सेटलो पण छेद् प्रभुए कर्यों नथी. परन्तु विष्णु सैन्यनी चौतरफ रथ भमाइना नेमिप्रभुए मात्र शङ्ख चगाड्यो के जेथी शत्र सैन्य प्रास पाम्यु, अने विष्णुसैन्यर्नु रक्षण थयु अस्तु ! गमे सेम हो ? पण विष्णुसैन्यर्नु रक्षण कोइफ्ण प्रकारे थयु एवामां ध्यानमा लय पामेला कृष्णनी आगळ श्रीजे दीवसे धरणेन्द्रनी आशाथी प्रभापुञ्ज मध्यमां रहेला धरणप्रिया पद्मावती अनेक देवी परिवारथी परिबरेला प्रकट थया, सुरीगणधी वीटायेला पद्मावतीने जोर कृष्ण सेमना चरणनो प्रणाम करी स्तुति करवा पूर्वक कृष्ण वासुदेय नीचे प्रमाणे घोल्या "हे पवित्रनेवि ! तमा जे मने दर्शन शय तेथी माग आन्माने आजे हुँ धम्य कृतार्थ पवित्र श्रयेलो मार्नु छ, आज मारी सर्व कामनाओ सफल थर. हे पवित्रदेवि ! नमारा जे वैभवने शकाविदेवन्द्रो पण वर्णवचा अशक्त छ, ने वैभवने हूं पोनानी जीमे शु वर्णन करें ? " इत्यादि कृष्णना अप्रतिम भक्तियचनथी प्रीति पामेला पद्मावतीदेवी कृष्णने कहे , हे हरि ! ज कारण माटे नमे मारा स्वामिनाथने संभार्यों ते काय दर्शावो के जेथी ई नमार इएकार्य शीघ्र पार पाई, देवीना बच्चनो मांभळी कृष्ण योल्या, हे पवित्र भगवति ? जो आप तुष्टमान हो तो
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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