SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - - - - - - - - - || मङ्गलाचरणविवेचनम् ॥ जे असह्यदर्शन तीर्थचन्मभुना तेजना वर्शन मादे प्रभुमा तेजःपुखमांधी पिडित करेलु बादश सूर्य तुल्य महातेजपन्त भामंडल प्रभुनी पुढे रामधु पडे छे. आ अपूर्व तेजः स्वरूपन शास्त्रकारोप अम्नां औजाणिक मत रति प्राहुना अतिशयोनु वर्णन आदि अनेक घले वर्णन कर्य छे. शरीर आकृति कोइना पण गुणबोधक विशेषण तरीके अर्थ न करता 'महस्विने' र पदनो केवल ज्ञानरूप झालहलता दीप्तिमान सूर्यनो उदय थयाथी शानरूपी अपूर्व मेजोनिधान पार्श्वप्रभु छ यो अर्थ करवाथी को प्रकारनी विरोधापत्ति भासमान थशे नही ! ! आ अर्थ करवाची बली एक अद्भुतलाभ प ययो के धीजो शानातिशय नामनो अतिशय स्पमतया शब्दित् थयो. आ पाप्रभु शश्वरपुरना मुकुट छ आ वाक्यश्री पटलो नैसगिक विचार उद्भचशे के थी पाप्रभुना च्यवनादि कल्याणकोबड़े पवित्र श्रयेलु शखेश्वर नगर नथी तेमज निर्वाण कल्याणकपडे पण नथी कारणके च्यवन-जन्मादि कल्याणकोथी पावन थयेली धाराणसी नगरी छे, ज्यारे निर्वाण कल्याणकथा पवित्र धीसमेतशिवर महातीर्थ छे, तो श्री पाश्वनाथ प्रभुना शंखेश्वर-सेरीसक स्तम्भन -गोडी-शमी-पश्चासरा-जीराषला मुहरी-बरकाणा-करहेटफ- फलवृद्धि-नाफोडा--लोध्रधा-अवन्ती-मकसी विगेरे उपपदो कहेवाय ने केवीगरील संभवी शके ?, आ विचारनो उत्तर नो मायज छे के- ते ते नगरोमा प्रतिधित थयेली प्रतिमाओना औपाधिक (नगरोना नामरूप उपाधियुस । ते ते नामी श्रीपाश्वप्रभु अने सेमनी प्रतिमा एकरूप होपाधी श्रीपार्श्वनाथना ते ते उपपद सहित नामो वालवामां मज ते ते प्रतिमाओना अधिटानी पाचन येली ते ते नगरीओना मुकटरूर प्रापनाथजी कहेवामा कोइपण बाधकचिचार. अवकाश पामी शकनो नथी, अर्थान् विश्वविदित श्री. पार्श्वनाथप्रभुनो महिमा मायालगोपाल जगप्रसिद्ध छे, या शस्लेश्वरनगरना प्रदेशमां ज्यारे प्रतिवासुदेव जरासंध अने बासुदेष कृप्णने अतुलयुद्ध शाम्यु हतु, धणो काल वीत्या पछी जरासंधे शत्रुसैन्पने अमेय जाणी कोपण रीत जय धवानो संभव नहीं थवाथी छेवटे पर्चे साधेली असुरी जगना बलथी मलदेव वानुदेव श्रीमन् नीर्थकर नेमिनाथजी प्र. प्रण विना सर्व शत्रु सैन्यने भूछिनावस्थाये पहोंचायु. उच्छवासमात्र धारण करतुं बनायु, प्रातःकाले मङ्गल विरूदावलीपूर्वक जागेला कृष्ण वासुदेवे पोताना मैन्यने तथावस्थ देखीने करमायला मुखे नेमिकुमारने का, हे बन्धु ? आशुं थयु ! तमारा देवानां माकं मैन्य भूचित जेधु थाय छ ? म्यामिषीनेमिश्रुमारे अवधिज्ञानना उपयोगी असुरसुन्दरी जरानी चेपा जाणी वासुदेवने जणायचाथी कृपणे नम्रवचनधी हर्षे शुं करवू ? ते प्रमाणे नेमिकुमारने पुण्यु नेमिकुमारे उत्तर आपतां जणाव्यु, हे कृष्ण ? पाताल ( अधोलोक) मां भुवनपतिनी बीजी नागकुमारनिकायना दक्षिणश्रेणिना अधिपति धरणेन्द्रना भुषना अधिकमहिमाशाली भविष्यकालमा थनारा त्रेधीशमा तीर्थर भीमन्यानाथजीनी प्रतिमा छे मारे अहम (३ उपघास) यजे एकाग्रध्यानधी धरणेन्दनी आराधना करी सेमनी पांसे ने प्रतिमानी याचना
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy