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________________ २५ ) ॥ श्रीलोकप्रकाशे तृतीयः सर्गः ॥ [सा० १४७] (३३०) त्रे यत्प्रतिभवं, तेषां शतपृथक्त्वकम् । भवाश्चाष्टौ ततो युनं, तत्सहस्पृथक्त्वकम् ॥१०॥ आकर्षः प्रथमतया ग्रहणं मुक्तस्य वा ग्रहणमिति, इदमर्थत आवश्यकसूत्रवृत्त्यादिषु (सा०१४७) ( सम्यक्त्यादिथी देशविरत्यादि मासिमा परस्पर अन्तर. ) ___ अर्थ:-कर्मनी जेटली (पल्यासाय भार दूधक कोसी शामरोपम ) स्थिति बाकी रह्ये जीव सभ्यत्तव पामे तेमाथी पल्यापम पृथसपमाण स्थिति क्षय थतां जीव ॥ ६८३ ॥ देशविरति पामे, माथी पण संख्यात सागरोपम स्थिति क्षय घना जीव चारित्र पामे ।। ६.८४ । ए प्रमाणे नेमांथी पण पुनः संख्यान सागरोपम स्थिति घटता उपशमवेणि अने नेमाथी पुनः संख्यात सागरो० स्थिनि घटनां जीव क्षपकश्रेणि पामे ॥ ६८५ ॥ ने पण वीजा वीजा देव अने मनुष्यना भवोमां सम्यक्त्वथी पतित नहि ययेलो पलो कोइफ जीव तो एकज (मनुप्य) भवमा काइपण एक श्रेणि सिवायना ने सर्व (देशवि०-सर्ववि०- १ श्रेणि ए ऋणे ) भाव पामी शंके, ॥ ६८६ ।। कारण के सिद्धान्तने अभिमाये एक भवमां वे श्रणि म धाय का छे के-"सम्यवन्द पाम्याबाद पल्यो० पृथक्त्व फाळे (२ थी ९ पल्योपस्थिति साने फर्मनी खपाध्ये छते ) श्रावक याय अने संख्यात संख्यात सागरोपमनेअन्तरे चारिअ-उपश० श्रे० ने लपकश्रे० थाय. ए प्रमाणे देव अने मनुष्य जन्ममा सम्य. नहिं पनित यये छते ( कोइफ जीवने तो) अन्यतर [ कोइपण एक ] अणि रहित सर्वभाव एफज भवमां प्राप्त थाय. " ए प्रमाणे श्रीविशेषा० महाभाये सूत्र अने वृत्ति वगेरेमां कधु . ॥६८७१ चार सामायिकनुं स्वरूप || सम्यत्तव-श्रुत-देशविरति-अने-सर्वविरति ए चार प्रकारनां सामायिक १ भाषार्थ प हे के:-त्र मनुष्य जम्ममा भमतो अप्रनिपतित मम्यकमवाळो कारक जीव (मनुष्य भरमा) पूर्वनी मात कर्मनी स्थितिमांधी एल्याश्यक्त्व स्थिति खपावे तो तेज [मनुष्य] भवर्मा देशविरतिपर्ण तथा सेमाथी मख्यात मागरोपमनी स्थिति खपाध्ये सर्वविरतिपणुं तथा मिद्रान्तकारमते तेमांथी मख्यातसागरोपम स्थिति घटाइये उपशमणि अगर नेमांची संख्यातसागरोपम स्थिति घटाइये आपकणि पामे छे, कर्मप्रन्थकारमते जेणे उपशमणि करी होय पण जो तसषमुक्तिगामी जीव होय तो अपक. अणि पामी शक छ, ते विचार आगळ कडेवाशे.
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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