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१३३४] ॥ सम्यग्दृष्टिद्वारे एकदिश्यादिसम्यक्त्वभेद निरूपणम् || (द्वार कहेवाय छे. ए प्रमाणे कोद्रवना दृष्टान्तथी (जाण)हवेत्रणे पुंज विद्यमान छते पण ॥ ६५१ ॥ ज्यारे अनिवृत्तिफरणवडे जीव सम्यक्त्वने न पामे ने वखने जीवने मिथ्यात्व अथवा मिश्रपुंजनो उदय थतो नवी ।। ६५२ ।। वळो सम्यक्पथी पडेलो जीव पुनः ज्यारे सम्यक्त्व पामर्नु होय ते वखने पण अपूर्वकरणबडेन त्रण पुंज करतो ॥ ७९३ ॥ अनिवृत्तिकरण नामना करणवडेज पूर्वनी पेठे सम्यक्त्व पामे
प्रश्न-अहिं प्रथम प्राप्त थया छतां पण बीजीवार पामेलं करण अपूर्वकरण केम कहेवाय ?मक अपूर्व एटले पूर्व प्राप्त नहि करेल ते अश्वकरण कहेवाय तो बीजीवार अर्थ प्रमाणे अपूर्वकरण न कहेवाय. ? ॥ ३५४॥
उत्तर-थोडीवार पामवाथी जे अपूर्व सरखं दोय ते अपूर्व कहेवाय. कारण के लोकमां पण दुर्लभ्य वस्तुमां अपूर्वपणानो व्यपदेश थाय छे ॥ ६५५ ।। ए प्रमाणे भावार्थ श्रीविशेषावश्यकनी वृत्तिमां कसो छ । ए प्रमाणे "सम्यग्दृष्टि" एवा व्यपदेशमां कारण रूप शुद्ध श्रद्धारूप सम्यक्त्वने बुद्धिमानाए ३ ३ प्रकारनु कहेलुं छे ।। ६५६॥ ____ अथवा एक-वे-त्रण-चार-ने पांच प्रकारर्नु पण सम्पन्न काले, त्यां। श्रीजिनेश्वरे कहेल नचनी श्रद्धारूप ने एक प्रकारच् सम्यक्त्त छे ।।६५७॥ नथा नैसर्गिक अने औपदेशक ए भेदयी वे प्रकारनु अथवा नैश्चयिक अने व्यावहारिक ए प्रमाणे पण चे प्रकार के. ॥ ६५८ ॥ अथवा द्रव्य अने भाव एम चे प्रकारनु सम्यक्त्व कमु के, त्यां जे स्वाभाविकरीने याय ते नैसगिंक अने गुरुना उपदेशादिवडे थाय ते औपदेशिक सम्यक्त्व कहेवाय ६५९ जेम रस्तेथी भूलो पडेलो कोइक बीजाए मार्ग देखाइधा विनाज भमनो भमतो मार्ग पामे तेवू नैस० अने कोइक कोइ भोमीभाना कडेवाथी मार्ग पामे नेवू औपदे० सम्यक जाण ॥ ६६० अथवा केटळाए कोद्रवा (धान्यविशेप) काळना परिपाकथी पोतेज मीणा विनाना थइ जाय, अने केटलाएक छाण वगैरना प्रयत्नधी मीणा रहित थाय तेम ॥ ६६१॥ अथवा कोइक ज्वर (नाव-चुम्वार) (पित्तादि) दोष पाकी जवायो स्वत: चाल्यो जाय, अने कोइक ज्वर वळी औपधादि प्रयत्न बड़े शान्त थाय तेम ॥ ६६२ ॥ अथवा कोइक जळ स्वभावधीज शुद्ध याय, अने कोइक जळ उपापथी भुद्ध थाय । अथवा कोइक वस्त्र स्वभावधीज उज्वल थाय अने कोइक प्रयत्नथी उज्वळ धाय ॥ नेम सम्यक्त्व पण केटलाएक जीवोने स्वभावथी अने केटलाएक जीवोने गुरुना उपदेशथी थाय के