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२३४) || श्री लोकप्रकाशे तृतीयः सर्गः ॥ सा० १४४१ ||६४८|| ( स तस्य विशुद्धतरः जायते सम्यक्त्व पुगलक्षयतः । शुद्ध पदल विगमे मनुष्यस्य (मा०१४४)
अर्थ-वे अतिनिर्मळ अध्यवसायवाळा अनिवृत्तिकरणवडे अन्तर्मुहूर्त्त प्रमानुं जीव अन्तर करण करे छे || ६२८ || ते अन्तरकरण कर्ये छते मिथ्यामोहनीयनी स्थितिना वे भाग थाय छे. तेमां अन्तरकरणथा नोने नी पहेली अने तेथी उपरेंडी वीजी स्थिति गणाय है. ॥ ६२८ ।। त्यां पहेली स्थिfaai मिथ्याrani दलिकनो उदय होवाथी जीव मिध्यादृष्टि गणाय, अने अन्तबाद में स्थिति व्यतीन थतां ॥ ६२९ ॥ अंतरकरण पाये छे ते (अंतरकरण) ना प्रथम समज जीव पौगलिक ( आत्मस्वरूप ) उपश्रम सम्यक् पामे छे|! ६३० || जेस कळी गयेला ईत्रणवाळो वननो दावाग्रि तृणरद्रित स्थळ पामीने आपोआप बुझाइ जाय, तेम मिध्यात्वरूप उम्र दावा ॥ ६३१ ॥ अंतरकरण पामीने पोतेज शीघ्र बुझाइ जाय छे ते वखते जीव औपशमिक नामनुं सम्यकत्व पाये है ।। ६३२ अहिं कोइक जीव औपशः सम्यक्त्व सॉथेज देशविरति अथवा कोइक जीव सविरति पण पाये ले. शतकबूर्णिमां के "औafe सम्यष्टि जीव कोइक अंतरकरणमा रह्यो छतो देशविरनि पाये के ने
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१ आ अन्तरकरण किया रूप के कारण अहिं रम्रो छतो जीव वेदया योग्य अन्तर्मुथी उपरती अन्तर्मु० प्रमाण स्थितिमांथी प्रति समय वलि* उठाषीने उत्कीर्यमाण विभागधी नीचेता अन्तर्मु मां अने उपरनी सर्व स्थितिमांनाखतो जाय है. अन्तर पाडवानी क्रिया पण अन्तर्मु० सुधी नाले क्रे जेथी उनकीर्यमाण विभाग दलिक रहिन यह जवाथी प. विभागनुं नाम
पण अन्तरकरणज
३ उपरनी अन्न न्यून अन्तःकोढा
२ अन्तमा
कोडी भागर प्रमाण
४ दलिक रहित खाली करेली विभाग पामे है.
५ औदferre क्षयोप मध्य पौलिक गणाच अने कर्मपुलना क्षय वा उपशमथी थयेनुं अपौद्र लिक गणाय, कारण के प पुकूलना उदय गहित है. ६ दलिकरहित खाली करेलो विभाग ग्रामीनं. ७ अहिं पश० सम्य० पामश्राना प्रथम समयेज देशविरति या सर्वपिरति पात्रो अर्थ न लेवो पण औपश० सम्य०मां वर्ततां का ममय देशत्रि वा सर्वविरति पामे एम जाणवुं अन्यथा गुणदोष आये.
व्यतीत थया या स्थानमादितमां मांक