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२२) ॥ श्रीलोकप्रकाशे तृतीयः सर्गः ॥ (सा० १२९ )
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कहेली छे, ए प्रमाणे सात वगेरे इन्द्रियो पण पूर्वोक जीवोने (वचमां हीन्द्रियादिनो एक भत्र करी मोक्षे जनाराओनं) कही छे. तेबुद्धिमानोर विचारवी ॥५५३ ॥ तथा चचमां संख्याता भव करी मोक्षे जनाराओने संख्यात इन्द्रियो वचमां असंख्य भव करनारने असंख्य इन्द्रियो अने वचमां अनन्त भव करनारने अनन्त इन्द्रियो भविष्यमां थनारी कही छे ।। ५५४ ॥ रिष्टा मया - अनं माघवतीना नारकजी बोने- युगलिक मनुष्य-अन युगलिक तिर्यश्वोने जघन्यथो भावी इन्द्रियो १० कही छे. ॥ ५५५ ॥ कारण के ए जीवोनी उत्पत्ति पञ्चेन्द्रिय शिवाय वीजी जातिमां होती नथी, अने ए जीवोनो अनन्तर भवमां (आवता भवमां) मोक्ष थतो aft माटे ओने जघन्ययी पण भात्री इन्द्रियो १० कही के, ॥५५६ ॥ वायुअग्नि-भने विकलेन्द्रियोंने भावी इन्द्रियो जघन्ययो ६ छे. कारण ए जीवोने वचमां पृथ्व्यादि ( पृ० - अपन० नो) एक भव कर्याबिना मोक्ष छे नहिं ॥ ५५७ ॥ ( ए प्रमाणे भावी भाषइन्द्रियोनी संख्या कहींने ये भावी द्रव्येन्द्रियो केटली होय ते कहे . ) एके० - द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय- चतुरि०-अने पञ्चे० जीवोने ( वर्तमान) द्रव्येन्द्रियो अनुक्रमे १-२-४ - ६ अने ८ होय छे. ॥ ५५८ ॥ पुमांना heorएक जीबीने भावि (काले ) द्रव्येन्द्रियो यवानी नयी, अने केटलाएकने ८ अथवा ९-१०-१६ थवानी छे अने केदलाएकने संख्यात- असंख्यात -अने अनन्त पण थवानी के ॥ ६६९ ॥ ए सम्बन्धी विचारणा पूर्वनीपेठे ( स्वबुद्धिए ) करवी.
नारकस्य नारकले, भावतो द्रव्यतोऽपि च । तान्यतीतान्यनन्तानि सन्ति पञ्चाष्ट च स्फुटम् ॥ ५६० ॥ भविष्यन्ति
१ आ पेरेग्राफमां विवक्षित जीवने मोक्षे जतां सुधीर्मा यच्चे को पण भव करवानी अपेक्षा भावी द्रव्येन्द्रियां कही.
* कारण ५ त्रण नारकजीवो मनुष्यमा आश्रीमे तुर्त मोक्ष न जाय पण नरकमांथी नोकळी तिचपये अथवा मातमी नरक शिवायना पटले के पांचमी छठ्ठी नारकीना जीयो मनुष्यनो भव करी मनुष्यमा आधी मोक्षे आय. अने युगलिको युगलिकपणामांची अवश्य देव ज थाय ने त्यांची मनुयमां आधी मोक्षे जाय म प्रमाणे दरेकने से वे भव कर्या विना मोक्ष नथी माटे.
२ मासिका से गणधानी होवाथी १ स्पर्शना, १ रसना २ श्रीप्रियने, चरिन्द्रियने २ नेत्र साथै ६ अने पंचेन्द्रियने २ ८ इन्द्रियो गणाय छे,
घाण ए ४ कान साथै
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