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________________ ॥ इन्द्रियोमा ९ द्वारनो यन्त्र ।। २२९ इन्दिशोना नाम जाडाइ प्रमाण | केटले दूर ! प्राप्यकारी के | केरले दूरी | पद्धष्ट । अवगाइनानु केटलाप्रदेशनी, व्यन्द्रियो विस्तार | । रहेलो विषय | अप्राप्यकारी भादेलो विषय स्पृष्ट के अस्पष्ट | अल्पबहुल बनली ८ | केटली ! प्रमाण २ | । ग्रहण करे. | विषय ग्रहे | | ७ प्रदेशमृताल्पा अंगुलनो स्पन्द्रिय असंख्यातमो स्वदेह प्रमाण अंगुल्मसंख्येय भाग । [बद्ध स्पृष्ट । विषय ] | प्राप्यकारी , ६ योभन । अस्मांगुलो)। घसस्पृष्ट | रसन० थी | रसन० थी संयगुण. | असन्यगृण. भाग मात्मामुल | पृथक्त्व ., । पृथक्त्व | रसनेन्द्रिय ! , ' . | .. | घ्राणेः। थी । घ्राण. दी। मसंन्थ्यगुण असंख्य ण । ॥भीलोकप्रकाशे तृतीयः सर्गः ।। (सा० १२९) ... प्राणेन्दिय । " अंगुलनी असंख्यातमो भाग , भ्रांची श्रांनी | संम्येयगुण | असंख्यमग चक्षुनिन्द्रिय साधिक १ लाख अंगुलसंख्येय अप्राप्यकारी योजन (भभास्व भाग वस्तु आश्रयि) भस्पृष्ट विषय) (आत्मांगुली) अगलासंख्येय भाग ५२ योजन | (स्पृष्ट विश्व) प्रारकारी ! (भात्मांगुली) | सर्वधी अल्पभनन्तरशी अवगाहना सबंधी साप वान्टी प्रर्दशा नायो । चक्षुधी संख्ययगुण | संख्येयगुण । [३०७] धात्रन्द्रिय .. "
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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