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॥ मङ्गलाचरणविवेचनम् ॥
स्मृतिकारोए पण कारनो महिमा गायो छ के-"अरविग्रहो देवो भावप्रायो मनोमयः । तस्यौतारः स्मृतो नाम, तेनाइतः प्रसीदति ॥ १ ॥ " " अपश्च प्रणवो नित्यं, प्रज्ञविष्णुशिवात्मकम ॥ कोटिसूर्यसम् तजरे, ध्यायेदात्मानं निर्मलम् ॥ २ ॥ " सेमज "जयित्वा पूर्वमों कारं वेदाध्ययनमारमेन् ॥ " इत्यादि स्मृतिवचनोथी वेदाध्ययनना प्रारम्भमा 'कार' जापनी कर्तव्यता बताषेली होवाथी *कारनी मांगलिकता ध्वनित थाय छे. वळी पातञ्जलयोगदर्शनना साधनपावमां समाधिसाधनो तरीके जे स्वाध्याय विगेरे धतान्या छेतेना अर्थमां प्रणव जाप ए मुख्य स्वाध्याय कह्यो छे, "स्वाध्यायः प्रणवजपः, मोक्षचारमाध्ययनं या", आ उपरथी अणाशे के प्रणवजाप ते समाधिनु मुख्य साधन छे, तेम पतञ्जलि फरमावे छे. व्याकरण शास्त्रकारोए पण प्लुतविधान सूत्रोना प्रसंगमा 'ॐ' ने संमार्यो छे के, ज्यारे प्रारंभ एटले प्रणाम विगेरेनुं अभ्यादान गम्यमान होय त्यारे '' ना स्वरोमांनो अन्त्य स्वर प्लुत विकल्प थाय छै, जेमके "ओश्म ऋषभमृरभगामिन प्रणमत (२)" विगेरे, जुभो सिद्धडैमशब्दानुशासन सातमा अध्यायना चतुर्थपादनु सूत्र २६ मुं" ओमः प्रारंमें "
आ विगरे अनेक विचारोथी भर्पियोग कारने घणोज महिमाशालि वर्णव्यो छे, वळी शब्द प्रकृति-प्रत्ययनी व्युत्पत्तिथी पण विचारतां महामंगलरूप छे, कारण के मंगल विध्नथी रक्षा करे छे, ज्यारे अनी शास्त्रकारोष करेली व्युत्पत्ति पण तेज अर्थ बताये छ, ' अवति विघ्नादित्योम् ' तेमज अनेकार्थक आ ॐकारको प्रयोग करेलो होचायी ग्रन्थनो प्रारंभ, मंगलकारक, मंगलस्वरूप, शुभ रीते आ नमस्कार धाओ प विगेरे अनेक अर्था अकारथी संभवी शके छ !!
वळी उपाध्यायजी महाराज आ मतुतिमां नमस्काग्थाचक नमस्पद मुकी पोतानी अलौकिक भक्ति प्रदर्शित करे छे, कारणके " नमः प नैपातिकपर द्रव्यथी हस्त शिरः चरणादि संकोचरूप यिशिकाययोगात्मक पंचांगप्रणिधान अथवा अष्टांगप्रणिधानादिना अरस्थाने तेमज भावधी मननी प्रस्तुत नमस्कार विपयमां एकाग्रता करवारूप मनोयोगात्मक भाव प्रणिधानवशाने सूचषे छे" तथा " शब्दोचारणमां वचनयोग प्रणिधान तो स्पष्ट अछे." आ उपरथी योगत्रिकथी करेलो नमस्कार भावनमस्कार छे, अने शेष द्रव्यनमस्कार छे.
वास्तविक रीते परमार्थ ऐहिक आमुग्मिक फळने आपनार भायवन्दन ज छे, जैने माटे कृष्ण शांधकुमार विगेरेना प्रान्तो प्रसिद्ध ज छ, अने द्रव्यवन्दन वास्तविक तेवा फलनं आपनार या नथी, तेने माटे पण धीरकशालवी, पालक कुमारादिना निदर्शनो पण सिद्ध ज छ, आ नमः निशतने पण शास्त्रोमां मंगलाळपणे प्राचीन आचार्योर ग्रहण करेलो छ ? ? ? ।
हवे आपणे उपाध्यायजी महाराजे आपेला शंखेश्वर पार्श्वनाथप्रभुना अलोकिक आश्चर्यास्पद गुणषोधक अतिशायि विशेषणोनो विचार करीये.
'परमानन्दनिधानाय' आ पदना अनेक अर्थों संभवी शके छे, जेमांना फेट