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________________ (२९४) || इन्द्रद्वारे विशेषस्वरूपनिरूपणम् ॥ (द्वार सिद्धयति ।। ५०५ ।। गन्धादिव्यवहारोऽपि भावनीयो दिशोधनया । तत आत्माङ्गुलेनैत्र, पृथुत्वं रसनादिषु ॥ ५०६ ॥ अर्थ- वो एकेन्द्रिय-दीन्द्रिय इत्यादिक जे व्यवहार ते निश्रय द्रव्येन्द्रियोनी अपेक्षाएन होय छे. नतिर वकुल पांगे (इन्द्रिय योग्य) उपयोग होनाथी पंचेन्द्रिय कवा. कथं छेकेदली मनुष्यनी पेठे सर्व उल (विषग्राहकमा) होवाथी कुछ वृक्ष पंचेन्द्रिय के तोपण (पांच) द्रव्येन्द्रियना अभावधी पंचन्द्रियन कहेवाय ॥ ४८८ || (ते बकुल वृक्ष संबंधि पांच उपयोग आमागे - ) झना झांझरना शृङ्कारखळी मनोहर श्रीनानिपदिरौना कोळी आ (कुल) पुष्पवाया है. ।। ४५९ ॥ एरीरीने पांचे इन्द्रि य योग्य उपयोग (एकेन्द्रियां पण जाणवा || इन्द्रियोनी लंबाई-व्होळाइ-ने जाडग्इ-पांचे इन्द्रियोतुं भी जिनेश्वरोए अंगुलना अख्यानमा भाग जेटलं वाहक के, अहिं निश् चाहत्य एटले जाढाइ जाणवी ॥ ४९० ॥ प्रश्न- जो स्पर्शेन्द्रिय अंगुचना असंख्यानमा भाग जेटलीज जादी होय तो खड्गादिकना मानो देहनी अंदर पीडानो अनुभव केम था ? ।। ४९१ ॥ उसर — जेम चक्षुनो विषय रूप के नेम स्पर्शेन्द्रियनो विषय श्री उष्णादि स्पर्श छे, परन्तु वेदनानो अनुभव वो ते स्पर्चेन्द्रियतो विषय तो ॥ ४९२ ॥ अने ते वेदना तो दुःखना अनुभवरूप पाटे ते वेदनाने तो आ आत्मा ज्व रादि (बुखारादि नी पेठे सर्व देवडे अनुभवे ॥ ४९३ ।। 1 प्रश्नः - ( जो एम छे तो ) शीतल पाणी पीत्राश्री (देवनी) अन्दर (शीनहाशंनो ) अनुभव के थाय छे ! कारणके ( अन्दरना भाग ) स्पर्शेन्द्रिय बिना श्रोत स्पर्स केप लागे ? ।। ४९४ ।। उत्तर (- आ स्पर्शेन्द्रिय निवें देहना सर्व प्रदेशमां (सर्वत्र व्यापी पहेली छे. प प्रमाणे पूर्वीचायना संप्रदायथी मानवा योग्य के ।। ४९५ ।। जे कारणमी १ छोत्रन्द्रियनी विषय जणाना माटे ए विशेषण छे. २. चक्षु इन्द्रियो विषय जणाथमा माने ए विशेष छ ३ घ्राणं द्रियनो विषय जणावया मारे विशेषण छे ४ रसनेयिनी विषय जगाया माटे विशेषण छ २ रुपयो विषय अणावया माठे व विशेषण छे ܙ
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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