SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 323
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२८८) || इन्द्रियद्वारे इम्पेन्द्रियस्वरूपमेदादिनिरूपणं ॥ [द्वार = नार ] ते उपकरणेन्द्रिय कहेवाय अने ते इन्द्रियना कार्यरूप है. पुनः निती न्द्रिय होते छते पण एटले मसूरांदे आकृतिरूप (अभ्य०) निति नहि हणाये छते पण तेना (उपकरणेना) उपघातथी (चक्षु वगेरे ) देखी शके नहिं ते उपकरण इन्द्रिय पण निर्वृत्तिनी पेठे वे प्रकारनी " ए प्रमाणे प्रज्ञापना वृत्तिना अभिप्रायथी अति स्वच्छ पुद्गलरूप अभ्यन्तर निवृत्ति के अने आचारांगट - सिना अभिप्रायी तो शुद्ध आत्मप्रदेशरूप अभ्यं० नि०ले. एम जानुं. वळी आ उपकरणेन्द्रिय शक्ति भने शक्तिमानना कथंचिद) भेदधी कोइपण रोते अंतरंग निईतिथी जुंदोज पदार्थ है. [गाथामां नतु अने ननु बन्ने पाठ प्रत्यन्स रोमां देवाता होवाथी नतु शब्दनो नथी प प्रमाणे अर्थ करतां ए गाथानो बीजी रीते अर्थ थाय ते नीचे स्फुटनोटमां दर्शवेल के.) ॥४७७|| वळी तेथ बच्चे कथंचित् भेद आ प्रमाणे छे के ते अभ्य० निर्वृत्ति होते छते पण द्रव्यादिक निमिषधी उपकरणेन्द्रिय हणाये छते इन्द्रियम पदार्थज्ञान पतुं देखातु नथी ( माटे अभ्य० नि०धी अभ्य० उप सर्वथा जुदी नहि पण कथंचित् जुदी छे.) ॥ ४६८ ॥ ए प्रमाणे द्रव्येन्द्रियनुं स्वरूप कबुं. १ मां इन्द्रियाकारे गोठवायला शुद्ध आत्मप्रदेशांनी विषय जाणवा रूप शक्ति ते अभ्यः उप०, अने इन्द्रियाकारे गोडपायेला इब्रियना पुजल स मूहमां विषय ग्रहण करवानी में शक्ति ते उप कटेवाय. प भावारांग तिनो भावार्थ हो, २ अभ्य०डप० अने बाद्य उप० प वनां उपधातथी ३ शुद्ध पडले तदावरणीय कर्मक्षयोपशम सहित मत्तविषयग्रहण करवा समर्थ. चालु प्रकरणने अनुसारे अभ्य० निर्वृ • नो शक्तिरूप अभ्य ५ कारण के अभ्य०नि० मे पुत्रल पदार्थ रूप है. अने अभ्य उप० ते इन्द्रिय पुत्रोनो शक्ति रूप छे. करणे ६ "वक्री कोइक अपेक्षा शक्ति अने शक्तिमाननो भेद न होवाथी आ उपकअभ्य० मि यो भिश्वय मुझे पदार्थ नथी" र 'नतु' पदधी अर्थ को ७ जैम कर्णेन्द्रियमां घणा-मोटा अवाज रूप शब्द पुनलोधी हेर मारे छे, नाकमां श्लेष्माद्रि प्रभ्य अधिक थषाथी गन्धग्राहकता अवराई जाय छे. इत्यादि होते द्रव्यादिनिमित्त जाणवु घणे ठेक्काणे सामान्ययी उपकरणेन्द्रिय अभ्यन्तर उपश्नी सा यंकता वारंवार कही छे परन्तु बामण्डपकनी सायंकता स्पष्ट ते दर्शा नथी ते संक्षेप आ प्रमाणे छे के बाल निवृति जे चक्षुगोबर यती (प्रगट
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy