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२२ मुं) || श्रीकाशे तृतीयः सर्गः ॥ (सा० ११८) जातिना जीवोai एक सरखो छे, माटे एनी (अभ्यानिनी) अपेक्षा इन्द्रि योना आकारनुं नियतपणुं [एटले अमुक इन्द्रियनो अमुक आकार के एम] कहे
. ॥ ४७१ ॥ ते आ प्रमाणे श्रोत्रेन्द्रिय कदंब [वृक्ष विशेष ] पुष्प सरखा आ कारवाळा मांसना गोळा रूप [जेवी] छे, चक्षु इन्द्रियनी अंतरंग आकृति मसूर नामना धान्पना दाणा सरखी [अथवा चंद्र सरखी गोळ] छे. ॥ ४७२ ॥ घ्राण इन्द्रिय अभिमुक्तक पुष्प सरखी अथवा काइल नामना [ पडघम ] वाना आकार सरखी छे, जिह्वेन्द्रिय खुरपा (अखा) ना आकारवाळी छे, अने स्पर्शेन्द्रिय जुदी जुदी जानना आकारवाळी . ॥ २७३ ॥ स्पर्शेन्द्रियमां बाह्यनिर्वृत्ति अने अभ्यन्तर निर्वृत्तिनो भेद नैथी एम पूर्वाचार्यो हेतु होवाथी तेमज स्त्रीकाबुं ॥। ४७४ खड्ग सरखी बाह्य निरृत्तीन्द्रियनी धार सरखी अतिनिर्मळ - द्र रूप जे अभ्यन्तर निर्ऋति ॥ ४७५ ॥ तेनी जे पोतपोताना विषयनो बोध करावनारी शक्ति ते (शक्ति) नेज श्री श्रीर्थंकरोध उपकरणेन्द्रिय कही के. ॥ ४७६ ॥ युग्मम् – आवे लोकोनो अर्थ सं .
श्री ज्ञापनावृत्तिमां प्रमाणेज कहेतुं के के- "खगना स्थानवाळी ( खड्गनी उपपात्राळी ) बाह्यनितिनी खड्गधारा सरखी (धारानी उपमावाळी) अत्यन्त स्वच्छ पूछना समूहरूप जे अभ्यन्तर निर्वृत्ति तेनो जे शक्तिविशेष ते उपकरण कहेवाय. " अने श्री आधारांवृत्तिम तो निर्वर्त्यते - रचाय ते निवृत्ति. कोनावढे रचाय ? [उत्तर - ] कर्मत्र. त्यां उ त्सेचांगुना असंख्याता भागप्रमाण शुद्ध आत्मप्रदेशोनी प्रतिनियत (नियमित) चक्षु आदि इन्द्रियोनः आकारे रहेली (गोडवायली) जे वृत्ति-रचना ते अभ्य न्तरनिर्वृत्ति एज (इन्द्रियने आकारे गोडवायला) आत्ममदेशोमां इन्द्रिय व्यपदेशने भजनारो [इन्द्रिय नामने धारण करनारी] नियमित आकारवाळी सुतार सरखा grafterst fनिर्माणनामकर्मे रचेलो अने अंगोपांगनामकडे निष्पन्न थयेलो जे कष्कुली वगेरे आकार विशेष ते साध्यनिवृत्ति कहेवाय अने ए बले प्रकारी निर्वृत्तिनो जेना बड़े उपकार कराय [ अर्थात् वन्नेने उपकार कर
१ जैम कर्णेन्द्रियादिकती पटकादि वा आकृति के माद्रिय नी बाह्य आकृति नहिं होवाथी प स्पर्धेन्द्रियमां वाद्यनिर्वृ अने अभ्य०नि० पत्रा मे भेद नथी
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अभ्यन्तर उपकरणेन्द्रिय विषयग्रोधक (परन्तु बापक) नदि.
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