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________________ (१८५) ॥ इन्द्रियहारे इन्द्रियस्वरूपं तभेदादिनिरूपणं च ॥ हार कृतिरूपायां निवृत्तौ तस्योपघातान्न पश्यति तदपि निवृत्तिवद् द्विधेति (सा० ११८)। एवं च प्रज्ञापनावृत्त्यभिप्रायेण स्वच्छत्तरपुगलास्मिका श्रभ्यन्तरनिवृत्तिः, प्रथमावृत्त्यभिप्रायेण तु शुद्धास्मप्रदेशरूपा अभ्यन्तरनिधृत्तिरिति ध्येयम् । इदमान्तरनिर्वृत्तेनैनू(तू)पकरणेन्द्रियम् । अर्थान्तरं शक्तिशक्तिमतो दात्कथञ्चन ॥४७७॥ कथञ्चिद्भेदश्च । तस्यामान्तरनिर्वृत्ती, सत्यामपि पराहते । द्रव्यादिनोपकरणेन्द्रियेऽर्थाज्ञानदर्शनात् ॥ ४७८ ॥ इतिद्रव्ये न्द्रियम् । ___ अर्थ--२२ इन्द्रियहारम् , हदू धातु परम ऐश्वर्यना अर्थनो वाचक छे, माटे इदु धातनामयोगथी इंदनात्-परमैश्वर्यपणु ( उत्कृष्ट ठकुराइपणुं ) होवाथी इंद्र एटले आत्मा कडेवाय छे. ॥४४॥ ते इन्द्रनं (आत्मा) किंग [चिन] अथ. षा ते इन्द्रे सरजेलुं चनाघेलं मारे इन्द्रिय एम कवाय छे, ने इन्द्रिय श्रोत्र (फान) विगेरे पांच पफारनी छ, श्री (विशेषावश्यक भाष्यकर्ताए कह्यु के॥६५॥सर्व मात्मलब्धियोना भोगरूप परमैश्वर्यपणु होवाथी आत्माज इन्द्र कहेवाय छे. माटे अहिं ने एर्नु लिंग इत्यादि भावथी श्रोत्र वगेरे भेदवाळी इन्द्रिय कहेवाय छे. ॥४६६। त्यां श्रोत्र(कान)-चक्षु-प्राण(नाक) रसन (जिह्वा) ने स्पर्शन (त्वचेन्द्रिय)-ए रीते ५ प्रकारनी इन्द्रियो छे ने पण दरेक द्रव्येन्द्रिय अने भावेन्द्रिय ए मेदयी वे घे प्रकारनी छे ।। ४६७ ।। ॥ द्रव्येन्द्रियर्नु स्वरूप. ॥ त्या निति रूप भने उपकरण रूप ए प्रमाणे द्रव्येन्द्रिय वे पकारनी के तेर्मा निईत्ति एटले आकृति एवो अर्थ थाय छे ॥ ४६८ ॥ वळी ते निवृत्ति पण पाय अने अभ्यन्तर (एम बे पकारनी के) तेमा दरेक जातना जीवोने जे जुदा जुदा आकारनी कर्ण परिका :फान पापडी) वमेरे प्रत्यक्ष देखाय के ने पानि ति || ४६२ ।। ते (का०नि० ) जुदा जुदा प्रकारनी होवाधी अमुक . आफारवाळी के एम कही काय तेम नथी, कारण के घोडा अने मनुष्यादिने [दरेक मातना जीवोने) ते इन्द्रियो जुदा जुदा आकारवाली [मत्यक्ष देखाय). ॥ ४७० ॥ अने अभ्यन्तर निवृत्ति (-इन्द्रियोनो अंतरंग आकार) तो दरेक .
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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