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२२ म) । लोकप्रकारचे वृतीयसर्गः ॥ (सा. ११५) (२८३) के इत्यादिक कल्पनाओ कोकसंज्ञा है. तथा आचारांगमां तो मोह-धर्म सुखदुःस्व-जुगुप्सा अने शोक ए ६ संज्ञाश्री सहित पूर्वनी १० संक्षाओ मळी १६ संज्ञाओ वर्णषेली छ. ॥ ४५८ ॥ अथवा पहेली दीर्घकालिकी बीजी हेतुयाद नामनी अने त्रीजी दृष्टिवाद नामनी ए प्रण संज्ञाओ कहेली छे ॥४९ त्यां हेली संज्ञारहे अति दीर्घकाळनो व्यतीत थयेको (धणा काळ पहेलांचनेको) अथ (बनाव) स्मरण करे अने हो कम कर ? ए प्रमाणे भविष्य काळनो विचार करे (ते दीर्घकालिकी संज्ञा काय.) । ४६०॥ तया ने बीजी संभावडे छाया अने आतप वगेरे वस्तुओमा इष्ट अने अनिष्टपणानो क्रमे करीने विचार करी पोताना मुखने पाटे (तेमा) प्रवृत्ति अथवा नित्तिवालो थाय (ने हेतुवाद सं. शा). ॥४६१।। तथा दृष्टिवादोपदेशिको संज्ञा मम्यग्दृष्टि जीवोनेज होय छे,
तेथी ए (दृष्टिवाद) संज्ञानी अपेक्षाए तो सर्वे मिथ्याष्टियो असंझिन छ । देव - नारक अने गर्भन जीवोने दीर्घकालिकी संज्ञा, बीन्द्रियादियी सम्मृच्छिप पंत्रे.
न्दिय मुधोना सर्व जीवोने हेतुवादिकी संज्ञा, ॥ ४६२ ॥ छनस्थ सम्पदृष्टि जी. बोने छेल्ली श्रुतज्ञानरूप दृष्टिबाद संज्ञा होय छे, अने मनिशानना व्यापार रहित एचा सर्व अरिहंत केवळी भगवान संज्ञारहित होय छे. ४६३ इतिसंज्ञाबारम् ॥
॥ संज्ञाचतुष्क यन्त्रं ॥
संक्षा
| कया कर्मना उध्यथी
करगतिमा अधिक
मादार संज्ञा
अशातायेदनीय
तिगतिमा .
भय संझा
मय मोहनीय
मरक गतिमा
मैथुन संज्ञा
वेद मोहनीय
मनुष्य गतिमां
परिग्रह संज्ञा
लोभ मोहनीय
देव गतिमा