________________
--.
-
--
(२.८०) ॥ एकेन्द्रियेषु संसाष्टान्तनिरूपणम ॥ (द्वार उपलक्षणयी सर्व एकेन्द्रिय जीवोने आ प्रमाणे दर्शावी -" वृक्षोने जे जळनो आहार ते [वृक्षनी ] आहारसंज्ञा, लज्जालनु भयवहे संकोचाइ जयु ते भयसंज्ञा, पंडी पोताना तुडे (लमाबडे) वृक्षने जेवट के तं पारग्रहसंज्ञा मथा मैथुन संज्ञाथी कुरुबक नामनुं वृक्ष स्त्रीना आलिंगनबडे फलद्रूप थाय छे ते मेंयुनसंज्ञा, नथा कोफनद नामनो रानाकमलनो कंद को धवड(कोइ पांसे जापतो) १कारो कर छे ते क्रोधसंज्ञा,१४४५.॥मानवडे हट्नी नामनी वेलडी पाणीने झरे
ते मानसंज्ञा, मायावद कही पोताना फळ द्वांकी राख के ते मायामंज़ा, छोभवडे बीलोन अने (धोळा) खाखरखें झाड पोतानां मूळ ( दाटेला ) निधान उपर फेला छे ते लोभसंज्ञा || १० || मने कमळना जे संकोच धाय छ ते लोकसंज्ञा, बने घेकीओ मार्ग छोडीने पण जन उपर मढे छ ते ओघ. संज्ञा कहेयाय के " ॥४५१ ।। अन्यदर्शनीभो पण वृक्षने मैथुनासंझा कहे के ने आ प्रमाणे-शृङ्गारतिलकमां का छे के " कोइक स्त्री पोताना पनिने मधु. र ध्वनिए मश्करीमां आ प्रमाणे कहवा लागी के-हे सुभग ? आलिंगन करनामा उत्कंठावाळा होबाथी) आप धैं कुरुबक (वृक्ष) सरखा नैथी ! मुख मदिरानी इच्छावाळी पना आप शुभारा हृदय उपर रहेला कसरत सरखा नधी ? खरेखर अशोक (वृक्ष) सरखा पवा तमने पादप्रहार (लात मारची ज योग्य है." ।। ४५२ ॥ " तथा अति शृङ्गारवाळी स्त्रोप देखेला पारा पण कूवामांधी उछछी बहार आवे छे" एम लोकोमा संभळाय छे. नारकजीवो मैथुनसंज्ञावाला-सर्वथी अल्प के तेथी आहार--परिग्रह-ने भय ज्ञावळा (नारक जीवा) अनुक्रम संख्यात गुणा छ, ।। ४५३ ।। तियेची परिग्रहसंज्ञावाळाअल्प के अने तेथी पैथुन
१ वृक्षमा संज्ञाओ जणापतां योजा एकवियोमा पण संज्ञानु अस्तिन्य जणायु छ घृशमां साक्षात् अनुभषयी समजी शकाय छे, माटे वृक्ष दुष्टांत ली, छ.
२ लाठु बनस्पतिने हाथनो स्पर्श करतां तेनां पारडा खोलेला हाय तो पण मीचाचामा छ माटे
३ रुदको बेलना रसथी सुषण बने छ ने लमांधी निरन्तर पाणीनां टपका हरे छे तेयी पमा मान संज्ञा प; के 'अहो जगतमा हुं सुषर्णसि. द्धि करनारी छतों पण अगतमा दरिन जनो दुःख भोगवे छ? पवा शो कथी निरं तर आंस टपकाधे मे" मान संज्ञा छ. अहि अलंकार नहिं पण मान सूचघेल.