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२० मुं) ॥ श्रीकप्रकाशे तृतीयः सर्गः ॥ (सा० १०६) ( २७५ ) हास्यादिनवकस्योक्ता, नोकषायकषायता॥४४०|| (सा०१०६) हासो खयरती भीतिर्जुगुप्सा शोक एष व । पुंखीक्लोवाभिधा वेदाः, नोकषाया अमी मताः ॥ ४४१ ॥ इति कषायः २० ॥
अर्थ - तथा श्रीप्रज्ञापना सूत्रमां ए चारे कषायोने स्वप्रतिष्ठित - अन्य प्रतिमोक्ष-उभयमतिद्धित अतितिए प्रमाणे चार चार प्रकारना का छे. ॥। ४२८ ॥ ते आ प्रमाणे पोतेज करेला दुष्ट कार्यथी आवी पडे कष्ट जोड़ कोइक पुरुष जे पोताना उपरज क्रोधवाको थाय ते स्वप्रतिष्ठितक्रोध कहेवाय. || ४२९ ॥ ज्यारे बीजो कोइ पुरुष ताडना तर्जनादि वडे आपणो कोष उदारे ( प्रगट करे ) त्यारे वीजा पुरुष उपर थयेलो आपणो क्रोध अन्यप्रतिष्ठितक्रोध कद्देवाय ।। ४३० ।। ए बात नैगमनयने अनुसारे जाणवी, कारणके तेनैगमनच तेना (निमित्त) संबंध मात्रयीज तत्पतिष्ठित माने छे.।।४३१ ।। बळी जे कोघ पोताना अने परना बन्नेना तेवा मकारना अपराधधी ययेको होय ते पोताना उपर अने परना उपरनो क्रोध उभयप्रतिष्ठित क्रोध कहेवाय छे. ॥ ४३१ ॥ अने पोते दुष्टतकर्या विना तेमज बोजाए संतजनादि कर्या विनाज आलंबन विनानो (निमित्त दिनानो) जे कोच फक्त क्रोधमोहनीयोदयना उदयधीज थाय ते अप्रतिष्ठित कोध कहेवाय, ए क्रोध कोकने क्रोधमोहना उदययीकोइपण कारण विना उत्पन्न थलो देखाय के ॥ ४३३ ॥ तेथीज पूर्वाचार्योए कधुं छे के कर्मो उदय आपली रखते (-कर्मनो उदय ) सापेक्ष (निमित्त पामीने) अने निरपेक्ष (isपण निमित्त प्राप्त थया विना ) होय छे, जेम सोपक्रमी आयुष्य सापेक्ष अने freeकमी आयुष्य निरपेक्ष कहेल छे. ते ॥ ४३४ ॥ इत्यादि अर्थ श्री प्रज्ञापना सूत्रना त्रीजा पदमां है. ए प्रमाणे बीजा त्रण कषायो पण ( चार चार प्रकारना ) जाणा ॥ ४३५॥ जीवोने ए चारे कषाय प्रायः चार कारणची प्रगट थाय छे. -१ भूमिना कारणथी - २ गृहादिकना कारणथी--३ शरीरना कारणथी-- अने ५ उपधि (घन धान्य वस्त्रादि) ना कारणथी. ॥ ४३६ ॥ ए चार कषाथमां सर्वथी अस अकपायी (सिड) जीवो छे, तेथी अनंत गुणमानपायी. तेथी विशेषाधिक कोच कषायी, तेथी विशेषाधिक माया कषायी, अने तेथी पण विशेषाधिक लोभ कषायी जीवो अनुक्रमे छे. ॥ ४३७ ॥ एकेन्द्रियजीवोने ए चारे कषाय बहारथी शरीरनो विकार दर्शाव्या विना अप्रगटरूपे
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