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________________ || मङ्गलाचरणविवेचनप्रस्तावे ॐकारवर्णनम् ॥ [ ३ ] धारणा करीये !!! आ स्तुतिमां प्रारंभमांज 'नमः' पद साधे प्रणवाक्षरनु उपपद . मुकी नमस्कारने घणो ज सुशोभित भने महिमास्पद बनाव्यो छे, वेमज आ स्तुतिने प्रारंभ मां सर्व मंत्रोना आदिबीजरूप ॐकारनो न्यास करी मंत्रना रूपमा सूत्रित करी छे, वळी आकारमा चौर पूर्वना साररूप सकल धुत स्कन्धोनी अभ्यन्तर वर्तता पंच परमेष्ठिनो पण समावेश थयेलो छे, ['अ (अरिहंत ) - अ (अशरीरी सिद्ध) था- आ (आचार्य) आ- उ ( उपाध्याय) ओम ( मुनि-साधु) ओम' वे 'अ' मळी आ, मा'ने' आ मळीने पण 'आ', तेमां उ मळवाथी ओ, तेनी साधे म् भूकवाथी 'ओम्' थाय छे. कछे के "अरिहंता असरीरा आयरिय उवज्झायया सुणिणो ॥ पंचक्खर निफन्ने पणवक्खरे पचपरमिट्टी ॥ १ ॥ इत्यादि जेनुं विशिष्ट स्वरूप गीतार्थ गुरु आम्नायथी समजी शकाय के तेमज ॐकारनुं ध्यान शा माटे करवामां आवे छे तेना फळ विगेरे संबंधी अनेक चमत्कारिक विचारों के जे गीतार्थ गुरु कुलवासनी उपासनाथी प्राप्त शके तेम छे, यही " कार बिन्दुसंयुक्त नित्यं ध्यायन्ति योगिनः । कामदं मोक्ष चच काराय नमो नमः ॥ ६ ॥ ईप्सित वस्तुने तथा परंपराये मोक्ष फळ ॐकारनुं योगीओ हमेश ध्यान करे छे ते ॐकारने वारंवार नमस्कार थाओ, आपनार बिन्दुसहित जे तेमज आकार अने अथ शब्द विगेरेने महामांगल्यसूत्रक तरीके वर्णव्या है, परदर्शनवेसाओ पण ॐकार अक्षरने अने अथ शब्दने ब्रह्माना आदिष्वनिरूप मान्या छे, अने तेथी ने बेउने कारने तेओ पण मंगळपणे कड़े छे. क के के:- "ॐकारश्चाथशब्दश्ध द्वावेतौ ब्रह्मणः पुरा ॥ कंटं भित्त्वा विनिर्यातौ सेन माङ्गलि कावुभौ ॥१॥ तेमज ॐ शब्दना निरुत्तमां पण तेओ "अकारो विष्णुरुद्दिष्टो उका रस्तु महेश्वरः । मकारेणोच्यते ब्रह्मा प्रणवेन त्रयो मताः ॥ १ ॥” “अ, उ, म, पण अक्षरोधी उत्पत्ति पामेलो ॐकार है" तेम बतायी मां अकारथी पालन शक्तिमत् चिष्णुनुं अधिष्ठान छे, उकारधी संहारशक्तिमत् शंकरनुं अधिष्ठान के असे मकारथी उत्पादशक्तिमत् ब्रह्मानुं अधिष्टान छे तेम सूचये छे भने तेज कारणथी शक्तित्रयसंपन्न देवत्रितयनो वाचक अकार महामंगलरूप थपलो छे. जो के आओ मन्तव्य आकाशकुसुम वर्णन जेषु केटलं सत्य छे से हाल मंगल प्रस्ताव होवाथी सुल्तवी राखी आगळ उपर सेनो विचार करीशुं परन्तु लुं तो निर्विवाद छ के तेओ पण अकारने मंगळरूप मानी पवित्र कार्य प्रसंगे ध्यान करे छे, बळी तेश्रो ॐकारनं केटला उच्चतमाशयश्री पवित्र अभ्यसनीय, उपासनीय अने ध्याननो विषय माने छे ते विचार नीचे लखेला तेओनाज पवित्र ग्रन्थोना पद्योथी आणवामां आवशे ॥ "यथा पण पलाशस्य, शकुनैकन धार्यते । तथा जगदिदं सर्व- माँकारेणैव धार्यते ॥ १ ॥ अकारं चायुकारं च मकारं च प्रजापतिः । बेयानिरदुहत् भूर्भुवःस्वरिति भिवा ॥ २ ॥ सिद्धानां चैव सर्वेषां वेदवेदान्तयोस्तथा । अन्येषामपि शास्त्राणां निष्ठाऽथकार उच्यते ॥ ३ ॥ प्रणवाद्या यतो वेदाः प्रणवे पर्यवस्थिताः । चाङ्मयं प्रणवः सर्वे तस्मात्प्रणवमभ्यसेत् ॥ ४ ॥ तत्सदिति निर्देशों, ब्रह्मणस्त्रिविधः स्मृतः 1 ब्राह्मणाश्चैव बेदाश्च,
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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