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________________ ॥ श्रीलोकप्रकारे प्रश्नः बर्गः ॥ ॥ मङ्गलाचरणम् ॥ ॐनमः परमानन्द-निधानाय महाखिने ।। . शंखेश्वरपुरोत्तंस-पार्श्वनाथाय तायिने ॥ १॥ शब्दार्थ-उत्कृष्ट आनन्दना निधानरूप, तेजस्वी (भने सर्व जोवना) रक्षण करनारा शंखेश्वर नगरना मुकुटरूप श्रीपाश्वनाथ मभुने प्रणवसहित नमस्कार थाओ.(१) विवेचन-सर्व तत्त्वोना आकार अने सकल सिद्धान्तना नियन्दरूप आ (लोकप्रकाश) ग्रन्थना प्रणेता उपाध्याय श्रीमद 'विनयविजयजी महाराजा' पवित्र ओंकार स्वरूप चमत्कारिक प्रणवाक्षरथी प्रारंभ करायेला प्रन्थनी शरमानमां “शिष्टसम्मत उत्तम पुरुषो कोइपण शुभ कार्य शरुआत करतां पोताना अभीष्ट देवनी स्तुति या नमस्काररूप मंगलाचरण करीने अ प्रवृत्ति करे छे. " ते मार्गनु पालन करवाने माटे अने तेम करवाथी ज पोतानामां पण शिटपणु आवे छे. कारण के " शिष्टाः शिरत्वमायान्ति शिष्मागांनुपालनात " ' शिष्ट पुरुषोमां शिष्टपणुं त्यारेज आवे छे के ज्यारे तेश्रो शिष्ट मार्गर्नु रालन फरे छ,' आवी पूर्वमूरिओनी सोनेरी मुद्राओन, मनन करी सेमज बळी अतिशय उद्भवेली भक्तिपूर्वक आचिर्भूत श्रयेला श्रद्धादिगुण पूर्वक शुभ भावनारूप धोघबंध जल प्रवाहे की क्लिप्ट कर्म मलना खिलय परामवाथी ज प्रस्तुत प्रधनी निर्विघ्न पणे समाप्ति थशे, अन्यथा महत्पुरुपोने पण श्रेयः कार्योमा घणां विनो आपी नडे छे, कारणके " श्रेयांसि यहुविधानि भवन्ति महतामपि " 'श्रेयः कार्यो मोटाओने पण घणा विघ्नवाळा होय छे' धेयः कार्यनी समाप्तिमा आहे आवनारा ते विघ्नो भवसन्ततिमां करेला पूर्वना दुष्कृत अशुभ पापकर्माना उदयश्रीज थाय छे, अने ते कर्मोना यां सुधी अ. पवर्त्तनादि करणे की स्थितिघात रसधातादि करवामां न आवे त्यां मुधी अवसरे विपाकरूपे अर्गला समान आडा आधीने पडे छे, माटे ते अशुभ कर्माना स्थिति-रसधातादिना हेतुरूप शुभ अध्यवसायनी आयश्यकता छे, ते शुभ अध्यवसाय पणा परमात्माना सद्भुत अलौकिक आश्चर्यप्रय गुणोनु कीन तथा तथाभूत गुणवत् त्रिभुवनगुरु तीर्थकर महाराजना नमस्कारद्वारा प्रदीप्त थाय छे आवो अपूर्ष विचार मनमा लावी श्रीशंखेश्वर पाचप्रभुनु गंभीर अने अलौकिक चमत्कारिक अपूर्वभावजनक शब्दोमां नमस्काररूप मंगलाचरण करे छे. __ हवे “महावाक्या वोधात्मक या तो हवाफ्यार्थबोधात्मक शाम्दषोधमा ते से पदजन्य पदार्थज्ञाननी कारणता छे." वो सामान्य नियम होचाथी तेमज "संहिता च पदं चैव पदार्थः पदविग्रहः । चालना प्रत्यवस्थानं व्याख्या तन्त्रस्य पद्दविधर || १ ||" प छ व्याख्याना संहिताविमेदोमां पदार्थ म पण एक वीजु व्याख्यांग होवाश्री प्रथम आ स्तुतिमा आवेला पदो संबंधी वि.
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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