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________________ २० मु) ॥ लोकप्रकादो तृतीयसर्गः ॥ (सा. १०४) (२७३) णरूप जे चारित्र हतुं ते संज्वलन कशायने उचिन ज हत. ॥ ४२५ ।। बळी श्री कर्मग्रन्थकारोए दृष्टान्नपूर्वक ए पायोने आ प्रमाणे काणाले.-चार प्रकारनो क्रोध अनुक्रमे जलनी रेखा-रेनीनी रेखा-पृथ्वीनी रेखा अने पर्वतमी रेखा सरखो (अनुक्रमे) छे. अने (चार प्रकारनुमान (अनुक्रमे) नेनरनी सौटो काटनो स्तम्यहाइकानो स्तम्भ-अने पत्थरना स्तम्भ सरखं छे. ।।४२३॥ [चार प्रकारनी) माया नांमनी कोल समान-गोमूत्र ममान--मंदाना (धेराना) शिंग समान अने वां सना मूळ सरखी ले. (चार पफाग्नो लोभ) हळदर-गाडानो कोट (काजळ) मुत्रीथी केशनी लोच करी मुनि अया. ते हेला गोसाधीनहाना वीजा ९५ भाइओए ऋषभदेव पिला पालें दीक्षा लीधेली हमी. तथी नाना भारीने पैदना फेम फर ! पथा मानथी १ वर्षमुधी ते पनमांज वाहुबलि मुनि उत्कृष्ट चारित्र भाषथी कायोमर्गमा रया, परन्तु माननो अंश रही अयाथी केबल भान पामी शक्या नोंह, स्यारवाद प्रषभदेव भगवाने बे माध्यो ओन (यनोने) उपदेश देया मोकळी, ते साधीओए हे धंधु हाथी उपरथी उमगे" त्या वि उपवेश आपबाथी बाहुबलि मुनिने " हुँ मान द्वाधीपर बदेलो छु . स्यादि चोध आयतां पोताना नाना भाराने बना करचा मागे पग उपादसांज केवलशान उत्पन थयु. अहिं पक वर्षमुधी बाहुबलि मुनिने मंज्वलन कपायज इतो, पन्धर दिषसनी स्थितियाळी ते काय कंहक अधिकमायाली होवाथी अप्रत्याख्यानी सरखो थयो तो जेधी १ वर्षसुधी ते रही शक्यो, १ जेम जालनी रेखा बगेरे प्रषा रेखाभो अनुक्रमे शीघ्र अने घणा घणा काळे मळे छ नेम संचलनादि ३ कोधघाळाओनो फोध अनुक्रमे शीघ्र घणा घणा काळे शारत धाय. अने पतनी रेखा (फाट) प्रेम कोरपण काळे कोरपण जु. पाये मळे नहिं तेम अनंता शोध पण कोड रीसे उपशमे नहि। पनापय रे. २ जेम नेतानी सोंटी वगेरे प्रण शीत्र अने अधिकाधिक कशथी बळी शक नेम संज्वलनादि मानवाळो स्टेलाइथी तथा अधिकाधिक कष्टे मान छोडी शके अने पत्थरनो स्तंभ जेम कोरोते पळी शके, नहिं सेम अनंता. मामधाळो नीष कोई रीते मम्रता धारण करे नहि. ३ जेम बांसनी छोलनी पता रहे सीधो थाय, आने वीजी व धकता अधिक अधिक उपाये टळे अने पांसमा मूळनी वक्रता को रीते टळे नादि तम संचलनादि माया संयंधि पकता पण जाणवी. ४ जेम हलदरनी रंग समां उतरी जाय वीजा ये रंग घणा घणा काटे उसरे भने कृमिरंग कोई गैने उत्तरेश मा नेम संचलनादि लोभ पण जाणतो. एमां कोधने फाटनो उपमा, मानने अक्कातानी, मायाने पक्रनाना. अने महोभने रंगनी उपम आपी छ,
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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