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|| लोकपकाशे तृमीयः सर्गः ॥ (सा. २७)
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नथा लश्या प पुदलनव्य अवश्य छे. परन्तु पुनलमी गणादिली प्राण वगणाओमांथी दत्यानां पुद्गलो का वर्गणाधाळा छ ? ने संबंधि सर्वथा स्पष्ट स्सु लामो लखित जणानो नथी, मात्र पनघणाजी घगरे मवस्याने "योगाम्नगत द्रष्य" एटलाज अक्षरोनी प्याख्या उपलब्ध थाय छे. परश्नु "अमुक वर्गणा' पम स्पष्ट नथो. अने ए संबंधमां उसराभ्ययनजोनी पाहअटीकामां कांक विशेषता ३. ते ग्यांची जाणथु.
नया दिगंयर आम्नायना अकलंकवरचित तत्वाधराजघातिकमां कंदयानां ६ बार नीचे प्रमाणे दर्शायां छ
१ निदेश-( कृष्णादि ६ लेश्यानां नाम दर्शाया छे. ) २ श्रण-( प्रथम दविल छ ने अनुमारे )
३ परिणाम-संख्यात लोकाकाशना प्रदेशप्रमाण अमरूपगुणा कायोदयस्थाना के जघन्य उन्धर अने मध्यम अंशधाळी २ तेश्रो आत्मानी परिणाम संक्लेशनी हानिए प्रवर्तनां कृष्ण नील अने कारोत प ३ अशुभले. स्याओ परिणम छ. तथा जघन्य मध्यम अने उत्कृष्ट अाघाळा स्थानीमा विशुद्धिनी वृद्धिए तेजः पन अने शुक्ल ए ३ शुभ लश्याओ परिणमे . नया उत्कृष्ट मध्यम अने जघन्य अंशोमां विशुद्धिनी हानिर प्रण शुभलेल्या परिणम हो, अने जघन्य मध्यम उत्कट अशोमा संक्लेशनो वृदिए ३ अशुभश्याओं परिणम छ अहिं दरेक लेश्या असरूय टोकाकाशना प्रदेश जेटला अध्यक्ष स्थान चाळी है.
१ संक्रम-कृष्णलेश्याबडे मंक्लिश्यमान जीव ( संकले शवृद्धिए ) बोजी लेश्या न पामे, कारणके कृष्णले श्याज पदस्थानातित संक्रमघडे तळे. भाषार्थ प छ के कृष्णलेश्या प्रथम अध्यवस्थान सघट सक्लेशवाछु छे अने त्यारपछीना आगळनां अध्यायानो षस्थानातित (हानि) ना अनुक्रमे छे. तेत्रो जरीते नील-कापोत खैश्यानां अध्यस्थानो पण पदस्थान पतित हानिना अनुकर्म छ, तदनन्तर तेजॉलेश्यानां अभ्य स्थानों पदस्थामपतिम विशुखिनो दिवाळी छ. तेबीजगते पत्र अने शुक्ललेश्यानां स्थानो पण घटस्थान पतित विशुद्धिनी वृद्धिप छ, ५ प्रमाणे बरेक लेश्या पोलपोतानामा पदस्थानपतित छे. तेथी कृष्णले श्याना अन्त्यस्थानथी संकलशमां बधनी बधता जीष कृष्णालेश्यानु प्रथम