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________________ १७) || लोकपकाशे तृमीयः सर्गः ॥ (सा. २७) (२२७ ) नथा लश्या प पुदलनव्य अवश्य छे. परन्तु पुनलमी गणादिली प्राण वगणाओमांथी दत्यानां पुद्गलो का वर्गणाधाळा छ ? ने संबंधि सर्वथा स्पष्ट स्सु लामो लखित जणानो नथी, मात्र पनघणाजी घगरे मवस्याने "योगाम्नगत द्रष्य" एटलाज अक्षरोनी प्याख्या उपलब्ध थाय छे. परश्नु "अमुक वर्गणा' पम स्पष्ट नथो. अने ए संबंधमां उसराभ्ययनजोनी पाहअटीकामां कांक विशेषता ३. ते ग्यांची जाणथु. नया दिगंयर आम्नायना अकलंकवरचित तत्वाधराजघातिकमां कंदयानां ६ बार नीचे प्रमाणे दर्शायां छ १ निदेश-( कृष्णादि ६ लेश्यानां नाम दर्शाया छे. ) २ श्रण-( प्रथम दविल छ ने अनुमारे ) ३ परिणाम-संख्यात लोकाकाशना प्रदेशप्रमाण अमरूपगुणा कायोदयस्थाना के जघन्य उन्धर अने मध्यम अंशधाळी २ तेश्रो आत्मानी परिणाम संक्लेशनी हानिए प्रवर्तनां कृष्ण नील अने कारोत प ३ अशुभले. स्याओ परिणम छ. तथा जघन्य मध्यम अने उत्कृष्ट अाघाळा स्थानीमा विशुद्धिनी वृद्धिए तेजः पन अने शुक्ल ए ३ शुभ लश्याओ परिणमे . नया उत्कृष्ट मध्यम अने जघन्य अंशोमां विशुद्धिनी हानिर प्रण शुभलेल्या परिणम हो, अने जघन्य मध्यम उत्कट अशोमा संक्लेशनो वृदिए ३ अशुभश्याओं परिणम छ अहिं दरेक लेश्या असरूय टोकाकाशना प्रदेश जेटला अध्यक्ष स्थान चाळी है. १ संक्रम-कृष्णलेश्याबडे मंक्लिश्यमान जीव ( संकले शवृद्धिए ) बोजी लेश्या न पामे, कारणके कृष्णले श्याज पदस्थानातित संक्रमघडे तळे. भाषार्थ प छ के कृष्णलेश्या प्रथम अध्यवस्थान सघट सक्लेशवाछु छे अने त्यारपछीना आगळनां अध्यायानो षस्थानातित (हानि) ना अनुक्रमे छे. तेत्रो जरीते नील-कापोत खैश्यानां अध्यस्थानो पण पदस्थान पतित हानिना अनुकर्म छ, तदनन्तर तेजॉलेश्यानां अभ्य स्थानों पदस्थामपतिम विशुखिनो दिवाळी छ. तेबीजगते पत्र अने शुक्ललेश्यानां स्थानो पण घटस्थान पतित विशुद्धिनी वृद्धिप छ, ५ प्रमाणे बरेक लेश्या पोलपोतानामा पदस्थानपतित छे. तेथी कृष्णले श्याना अन्त्यस्थानथी संकलशमां बधनी बधता जीष कृष्णालेश्यानु प्रथम
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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