________________
॥ लेण्याद्वार टिप्पनकम् ॥ . [द्वार स्थान पामे स्यारवाद संक्लेशदिवाळी बीजी को लेझ्या नहि होपायी कृ. गलेश्यामाज अटकी माने पुन: हानिमा पसे ते,षखते घटस्थानपतित हानिय वर्तता ज्यारे कृष्णलना अनन्यस्थानरूप सकल शयी पण होनसक्लेश आयनां सुनंज नौलले मा उत्कृष्ट संक्लेश स्थानपर आवे. प प्रमाणे कृष्ण लेश्यानी मंगलेशघृद्धिमा तना जीवने म्यस्थानसेक्रम होय पण परस्थानमंकम न होय अने मं. क्लेशहानिमा वर्तना जोबने स्वधानसंक्रम अने परस्थान कम यन्न होय, पुनः एज पद्धतिए शुक्रलेख्यामा विशुद्धिमी वृद्धिप. पर्नना जोरने परस्थान भक्रम न होय पण स्वस्थान संकम एकत्र होय (कारण के आगळ बीजी अधिक विशुद्ध लेण्यानो अभाव छ ) अने शुक्लले श्यामां विशुदिनी हानिए वतना जीषने स्वस्थानक्रम तो होय परग्सु पचलण्याना उस्कृष्ट स्थानने पामयारूप परस्थानमंकम पण होग, अने ए प्रमाणे मध्यनी चार लेण्याप्रोमा बृद्धिए अने हानिए वर्तनां स्वस्थान अने परम्यान बन्ने मझम होय. हि बस्यामतिनमां अनंतभागद द्विमा सर्व जीवनमाण अनंत पj, जाणवू अमंख्य भाग. पृद्धिमा असंख्यलोकनां प्रदेशरूप असंख्यगणु, संख्येयभागवृद्धिमा उत्कृष्ट म. ख्यातर्नु संख्यातपणु, जाणवं, प रोते अनन्त गुणादिमां पण जाणवु. ५ कर्म-(अंबुफळ भक्षक- दृष्टान्त दशविल छे.) ६ लक्षण -- (का लेण्याब जोबना स्वभाव केवा होग ७ ते पण स्फुर नोटमां दशचिल).
गति-लश्याना २६ अंशमा ८ अंश आयुष्याबंधने योग्य छ, कारण के माल अपकर्षरूप मध्यमपरिणामबड़े आयुष्यबन्ध होय छ ( अधि २६ अंश की रीते ? ने विगवगम्नायथी जाणवा.) अने शेष १८ अंशवडे पकगति नामकर्मज अंधाय छे. त्या उत्कृष्ट शुक्ललोण्या परिणामकाळा जोधों काळ करीने सर्वार्थसिद्ध मां जाय, जय शुक्ल सोश्यावामा शुक्र-महाशुफ-शतार-ने माहस्रार कल्पमा जाय, मध्यम शुक्ल होण्याला आनतथी चार अनुत्तर सुची उ पजे. उत्कृष्ट पअसलेल्याबाळा सहचारमा. जय पवाले वाळा मनन् माहेन्द्र यां, मयमपालेच्याळा ब्रह्माथी शतार देलांना कल्प सुधी, उत्कृष्ट ने जोलण्यावा ळा सनत्कुमार मे माहेम्बकल्पमा अन्य चकनामना इंद्रश्मिामधी निकळती विमानपंक्तिमा, जघ० सेजोलेगाषाळा मोधर्म अने ईशाननी प्रथम प्रक विमानथी निकळतो श्रेणीमा, मध्यम तेजो लावाला वंद्रनाममा बन्नकषिमान