________________
....
.
[१७] ॥ लोकप्रकाशे तृतीयः सर्गः ॥ (सा० ९७) (२०१) लोगा, लेस्साएं हुंति ठाणाई ॥ १ ॥" [असंख्येयानामुत्सर्पिणीनामवसर्पिणीनां च ये समयाः । संध्यातील लोकाः, लेश्यानां भवन्ति स्थानानि) (सा० ९७) ___ अर्थ-हवे चालु विषए कहेवाय छे-ने गोलेश्यानी जयन्य स्थिति १० हजार वपनी ज्ञानवडे सूर्यसमान श्रीसर्वज्ञभगवन्तोए भवनति अनेव्यन्तरोने कही छे. ॥ ३४२ ॥ अने ( तेनो लेखनी) जस्थिति भवनपनिने १ सागरोपपी कंडक अधिक ( पस्यो० असं०माग अधिक ), अने ध्यन्नरोने ? पल्यो प्रमाण कही छे. ॥ ३५० ॥ पुनः ज्योतिषी देवीने ते ( तेनोलेनी)नी जघन्यस्थिमि प. स्योपमनो आठपो भाग अने उ० स्थि. १ लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम प्रमाण है.।। ३५१ ॥पुनः तेजोलेनी ज. स्थि० वैमानिक देवोने ? पल्योपमनी में अने उ० स्थि० पल्यो नो असं० भाग अधिक वे सागरोपम छे ॥ ३५२ ॥ बळी समय अधिक तेज स्थिति (समयाधिक पल्यो० अ० भागयुक्त चे सागरोपम ) पालेश्यानी जयन्य स्थिति छे, अने एनी उ. स्थि० १० सागरो० प्रमाण के. ।। ३५३ ।। पुनः एज स्थिनि समय अधिक करी छती ( समयाधिक १० सागर ] शुक्ललेश्यानी जप० स्थि० थाय, अने एनी उ. स्थि० ३३मागरोपम प्रमाण छे ।। ३५४ ॥ ए प्रमाणे नारक अने देवसंबंधि लेश्याओनी स्थिति कहीने हवे नियंच तथा मनुप्य सम्बन्धि लेण्याओनी स्थिति कहवाग है. ॥ ३५५||
॥सियच अने मनुष्य संबंधी लेगाओनी स्थिति ॥ जे जे लेझ्या जे जे मनुष्य अथवा निर्यचां कहेवाशे ते मनुष्य सम्बन्धि शु. कललेश्या विनानी सर्व लेश्याभो (मनु. ५ अने तिर्य०६) अन्नम प्रमाणनी (अघ उत्कृषी ) जाणवी.॥३५६ ॥ अने मनुष्य संबंधि शुक्न लेश्यानी जघ० स्थि० अन्नk० अने उ० स्थिति ९ वपैन्यून पूर्वक्रोडवर्षनी कहेली छे. ॥ ३५॥ जो के आठवर्षनी वय ( उमर ) वाळो कोइक जीव दीक्षा अङ्गीकार करछे, नोपण नेटली क्यवाळाने १ वर्षनो पर्याय ( दीक्षाकाळ ) थया विना केवळज्ञान उत्पन्न थतु नथी, माटे शुक्ल लेश्यानी ३० स्थिति ९ वर्पत्यून पूर्वक्रोड वर्षनी १ देख अने नारक संबंधि लेण्याभोनी स्थिति विशेषतः तेभोना आयुष्यनी स्थितिने भभुसारे छे. अपवाद मात्र के अन्तर्मु अधिक अने धृमप्रभा तथा
शलापृषी संबंधी अपधाव प्रथम कमो छे. २ अर्थात ७०५५२९९.९९९९९९९९९९९९९१ वर्मनी. उत्कृट केवटपर्यायनो अपेक्षाप: