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( २५२ ) || लेश्याद्वारे शुक्ललेल्या स्थितिर्गणाविचार || [द्वार कड़ी से युक्त है. ॥ ३५८ ॥ ए उत्तराध्ययन सूचनी वृत्ति अने पद्मवणा हसिनो अभिमाय को.
एज रीते संग्रहणीमां पण कछे के "मनुष्योने वली शुक्ल लेश्यानी स्थिति ९ वर्षेन्यून पूर्वकोडवर्षेनी छे." संग्रहणीनी वृत्ति अने प्रवचनसा शेवारनी वृत्तियां तो " किञ्चित न्यून ९ वर्षन्यूनपूर्व क्रोड वर्षनो पण छे, का रण पूर्वक्रोडी उपरनी वयवाळाने चारित्रनो अप्रासि होवाथी पूर्वकोड वर्षना आयुष्यवाळा अने कंक अधिक आवर्ष बाद उत्पन्न थयेल केवलज्ञानवाला केव श्रीभगवान ने आस्थिति जानवी" एम कल छे. अहं पूर्व कोडवर्षमा ९ वर्षनी न्यून. (१) किंचित् न्यून ९ वर्षनी न्यूनता (२) अने किञ्चित् अधिक ८ वर्षनी न्यू नता ( ३ ) ऋणे कथन जेम परस्पर विरुद्ध न धाय तेम बहुश्रुतो विचारां. ३५९ सर्व श्यामांनी प्रत्येकनी अनन्त अनन्नवर्गेणाओ कहीछे तथा सर्वेले पाओ प्रत्येक अनन्त अनन्त प्रदेशवाली छे ।। ३६० || अने सर्व लेश्याओमांनी दरेक असंख्य असंख्य ( आकाश ) प्रदेशना अवगाहवाळी के. बळी ते दरेक लेश्या - ओन अध्यवसाय स्थानो असंख्य असंख्य छे ।। ३६१ ॥ अध्यव० स्थानो) क्षेत्री असंख्यात लोकाकाशना प्रदेश प्रमाण अने काळची असंख्य कालचक्रना समय प्रमाण छे. ।। ३६२ ॥ ऋछे के असंख्य उत्सर्पिणी अने अवसर्पिणी ना जेटला समय अने असंख्यात कोकाकाश(ना जेटला प्रदेशो ) तेटलां लेश्यानां
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के- अशुमलेल्यानां भावले पारूप अध्य
१ अहिं दरेक लेयाना असंख्य असंख्य लोकाकाशना प्रदेशप्रमाण असंरूप अध्यवसाय स्थानां जाणत्रां त्यां श्री पत्रवणाजीम का संक्लेशरूप अने शुभन्यानां विशुद्धिरूप स्थानों के ए वापस्थानोनां कारणभूत जे कृष्णादि द्रव्यसमूह तेपण स्थान कहेवाय. पज श्यानां स्थानो अहिं ग्रहणकरवां ते प्रत्येक लेश्यानां असंख्य छे. तेमां पण प्रत्येक श्यामां मे प्रकारनां स्थान छे. जघन्य अने उत्कृष्ट भने मै मध्यमस्थानो छे मी अवश्य नजीकनों मध्यमस्थानो जघन्यमां गणषां अने उत्कृष्ट पांसेना मध्यमस्थानो उत्कृष्टम गणधरं जेथो चेज प्रकारतां स्थान याय में जेवी एक लेल्याना जघन्यमां अने उत्कृष्टमां पण परिणाम गुण भे दयी असंख्य स्थान आबे इत्यादिवर्णन त्यांथोज जाणवु हमे पलेयान्यना निमित्तथी जीवांना जे जे परिणामस्यभाव उत्पन्न थाय छे, ते था कर्मप्रयम टोकामांथी प्राकृत गाथाओना अर्थ रूपे त्राय है.
६ लेश्याना स्वभाव - (१ कृष्णलेावाको जोब - बैरवढे निर्दय, अतिक्रोधी, दुष्ट मुखषाको, तीक्ष्ण, कठोर, आत्मघमंथी विमुख भने तत्काल करनारो होय .
वधू