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________________ -- - (२४६) ॥ लेण्याद्वारे लेश्यास्थितिविचारः ॥ लश्या परिणामना आदिक्षणमां अने अन्त्य क्षणमां प्राणीयोनु मरण यk नयी परन्तु छेलालु अन्तमुहर्त वाकी रह्य छने, अने हेलं अन्तमहत व्यतीत थये छतेज परण थाय छे. १३२७॥ तेमां पण देव अने नास्कन मरण लेठयापरिणामनु लेखलु अन्त महत बाकी रहे त्यारे, अने मनुष्य तथा तियेचन मरण लेश्यापरिणा. मनुं प्रथम अन्नमा व्यसीन घइ जाय त्यारे याय. एज मर्यादा छे. ॥ ३२८ ।। अर्थ-उत्कृष्स्थिति कृष्णलण्यानी पूर्वना अने आगळना भव सं. पंधि (२) अन्तर्मुहुन अधिक ३३ सागरोपप छ ॥ ३२९ ॥ नीलले० नी उ० स्थिति पल्योपपना असंख्यानमाभाग सहिन १० सागरोपम. कापोतले. नी ३० स्थिति पल्योपमना असंख्य भामयुक्न ३ सामगेएम ॥ ३३० ॥ ए बेनी स्थितिमा पूर्वभव अने आगळना भवधिना अन्त हत्ते पल्यो ना असंख्या. भागमा ( असंख्यातना असंख्यभेदो होवाथी) अनर्गत छ माटे जूदा कut नयी. ।। ३३१॥ ए प्रमाणे नैनस लेख्यामां पण विचारवं. तेजसलेश्यानी ३० स्थि: पल्यो ना अ०भागयुक्म के सागरोपमछे गमले नी उ० स्थि० वे अन्न मुं अधिक १० मागरोपम छ. ॥ ३३२ ॥ अने शुक्ल ल० नी ७० स्पिबे - . अन्नर्मु. अधिक ३३ सामरोपम छे. तथा सर्व लढ्या मोनी जघ. स्थिति अन्नमें मात्र के एमां मधम लथ्यानी उ. स्थित मानमी पृथ्वीना (नपानमामभाना) नारक जीवोनी उ० स्थिती अपेक्षाए छे. बीनी लेण्यानी उ० स्थि छट्टी धूम प्रभा पृथ्वीना प्रथम प्रनरवर्ति नारक जीवोनी उ० स्थि० नी अपेक्षाए छ. पीजी लेग्यानी उ० स्थिति त्रीजी शला पृथ्वीना प्रथम प्रतरनी उ० स्थि० नो अपेक्षाए के. चोथी लेश्यानी स्थि० इशान कल्पवनि देवोनी उ० स्थि. नी अपेक्षाए के, पांचमी लेश्यानी स्थिः ब्रह्म देवलोकना उ० आयुष्यनी अपे. क्षाए, अने छट्ठी लेश्यानी उ• स्थि० अनुत्तर विमानवासी देवोना उ० आयुपनी अपेक्षाए है. ॥ ३३३ थो ३३६ ॥ "अहिं जो के धूमप्रभा अने शैलप्रमाना प्रथम प्रनरनी ३० स्थिति पूर्वे कह. ली (पल्यो ना असं० भाग सहिम चे अने त्रण सागरोपम ) स्थिनिधी अधिक पण के परन्तु प्रस्तुत ( विवक्षिन नील अने कापोन , च्यावाला नारकी मोनी १-२ प ये गाथामा बीजी गाथानी भाषार्थ प्रथम गाथाना भाषार्थना कारणरूपे पण जाणवी, अर्थात् तमा पण " प वाक्यने बदले "कारणक" पम पांचपाथो पण पधु सुगम पडशे.
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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