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________________ (२४२) ॥ लेश्याहार लण्यापरिणामधान्तविचारः ॥ (बार पुवपडिवन्नओ पुण, अन्नयरीए उ लेसाए॥१॥” (सम्यक्त्वस्य च तिसृषु उपरितनीषु प्रतिपद्यमानको भवति ॥पूर्वप्रतिपन्नकः पुनरन्यतरस्यां तु लश्थायां ||१||) (सा०८९)तथैव तेजोलेश्याढथे, घटते संगमामरे । बीहोमहर्गकर्ता, कृष्णागादिसंगपि ॥३२१॥ स्वरूपस्यागतः सर्वात्मना तिर्यग्मनुष्ययोः । लेश्यास्तद्रपता यान्ति, रागक्षिप्तपटादिवत् ।। ३२९ ।। अत एवोत्कर्षतोऽप्यन्तर्मुहर्तमवस्थिताः । तिर्यग्नृणां परावर्त, यान्ति लेझ्यास्ततः परम् ॥ ३२३॥ (श्याओना परिणामादि विचार) अर्थ-आ लेण्याओ परस्पर एक बीजानो संसर्ग पामीने तद्रूपपणाने पामे छे, त्यां वेडयमणि अने राता वखनु ए ये टांत जाणवां ॥ ३१३ ॥ तेषां प्रथम वैडूर्यमणिर्नु दृष्टान्त देश अने नारफनी लेश्यामां तथा राना बस्ननु दृष्टांत तिर्यच अने मनुप्यनो लेश्याम जाणवू, ।। ३१४ ॥ ते आ प्रमाणे देव नारकनी लेश्या आखा भवसृषी एकज प्रकारना कायम रहे छे तोपण बीजा दूपमा संवैधयी अनेक प्रकारना आकारन पामे छे. ।। ३१५ ॥ परन्तु ते लश्याओ सर्वधा पोता. में स्वरूप त्याग करतीनधी,जेम उत्तम वडूयमणि अनेक रंगवाळा दोराना संबंधी पोतानो रंग ( लीलो रंग) बदलनो नथी, ।। ३१६ ॥ अथवा जासुदना (अतिलाल ) पुष्प वगरना संबंधयी (साम धरवाथी) आरीसो अनेक प्रकारना रंगने धारण करतो छनो पण पोतार्नु ( श्वन ) स्वरूप त्याग करनो नथी ॥ ३१७ ॥ [तेम अन्यद्व्यना संबंधथी पण ] देव नारकनी लेश्याओ पोता स्वरूप छोस्ती १ कृष्णलेश्या नीललंश्यादि ५ लश्याना समाथी नीशादि ५ लश्यारूप था जाय. प रीते नीलादि सब लेश्याओ परस्पर संसर्गथी चवला जाय छ, २ स्त्र अने नारकनी लेश्याना सम्बन्धमा श्वतषणमा स्फटिक रत्ननु दृष्टान्त पण आये २. परन्तु अहि लीला रङ्गबाळा बर्य मणिनु अष्टात पण पकज भावार्थ याचक छ. . ३ अर्थात् में दय अथवा नारकने जन्मथी * लश्या छे तेज लेश्या आना भयमुधी व्यापणे-पुनलपणे कायम रहे छ. परन्तु परिणामथो भाषरूपे पवलाय छे माटे द्रव्यलेश्या एक होय ! अने भाव परावृतिपय पण केश्यामओ होय छ भने ८ भाष परावृत्तिए मूलद्रव्यले न्यानो आकार काक बदलाव से पण संबंध अभ्य वेश्यारूप था जती नथी,
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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