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________________ --:--- :: ----- .. १२ मुं) ॥धीलोकप्रकाशे तनीयः सर्गः ॥ (सा० ८१) (१९३) ... :::::-::.:- - :---- (करे.)॥२४॥षीजे समये ते दंडने लोकना पूर्व अने पक्षिम छेडाने स्पर्श त्यांधी दंडना आत्ममदेशोमांयी कपाटकमाडनो आकार बनाये, सदनंतर - पटुतायुक्त (निपुण ) एवा केचलिभगवान् बीजे समये ॥२४१।। कपाटमांथी आस्मप्रदेशोने उत्तरदक्षिण लोकना छेडासुधी विस्तारीने मथान ( रवैयानो आकार. ). रचे. तदनंतर चोथे साये मन्थानना आंतरा ( चार आंतरा) पूरे ॥२४२॥ ते बखते ( चोथे समये) ते केवळी भगवान् पाताना सर्व आत्ममदेशोर'लोकाफाशना सर्व प्रदेशोने व्याप्त करे छै ( अर्थात सर्वलोकमां व्यापी रहे थे..) कारणके लोकाकाशना अने एक जीवना र प्रदेशो परस्पर तुल्य संख्यावाला के. ॥२४॥ पुनः पांचमे समये केवली भगवान् पूरेला आंतरा संहरे, छठे समये मंथान संहरे. सातमे समये कपार संहरे,॥२४॥अने आटो समये दंड संहरे वे दंड संहरवायी केवली शरीरस्थ(पोताना शरीरनी अवगाहनामां व्याप्त)याय, अने स्यारवाद अन्नमहत्तं जेटलो काळ जीवीने त्रणे योगनो निरोध (रोकाण) करीने मोक्षे जाय ॥ २४५ ॥ कथं छे. के प्रिशमरतो)-" वळी जे केवलिने आयुष्यथी अधिक फर्म बाकी होय तो ते सरखां करवाने माटे केवली भगवान् समुद्घात करे छे. ॥ २४६ ॥ त्यो प्रथम समये दंड. बीजे समये कपाट, श्रीजे समये पंथान, अने चोथे समये सर्वलोफ घ्यापी थाय छे, ॥ २४७ ॥ वळी पांचमे समये आसरायो, छठे समये मंथान, सानमे समये कपाट अने त्यारवाद आठमेसमये दंड संहरे छे. ॥२४८॥ अहि हेला अने आठमा समयमां केवली औदाछे तमा असंख्य भाग करपा तेमाथी मा २ समये असंख्य भाग घात करी पक भाग वाको राखे पुनः दंडसमयथी पूर्वलमये ३ कर्मनी में रस हतो तेना अनंत भाग करवा तेमांयी २५ अशुभप्रकृतिना अनुभागना अनंल भाग करी अनंस भागनो धात करी १ भनम्तमो भाग घाको राखे अने (३९ शुभप्रकृतिना ) अनंतभागनी अशुभपरप्रकृतिमा संकमरूपे घात करी एक भाग घाकी राग्वे,ए समुदयातनुं माहात्म्य छे, पुनः कपाटादि समयोमा पण बाकीराखेला एकेक भागना असंख्य अने अनन्त माग करी घाम करी पकेकमाम थाको राखे र प्रमाणे प्रति (१-५) समयमा स्थितिकडक तथा अनुभागफंडकमो घात दंडसंहार समय सुधी प्रयतं तदनंतर कपाटसंहार रूप छट्ठा समयथी मयाम मंद पडवाथी अन्तर्मुहत काळे पकककडकनो घात थाय, पण छट्ट समये आखा कंडकनो छात म थाय पप्रमाणे छट्ठासमयथी मांडीने सयोगिपणाना घरमसमयसुधी प्रत्येक अम्त. मुद्रा पफेक स्थिति अने अनुभागडकनो घात करता १४मा गुणस्थानना काळप्रमाण चारे कर्म स्पितिवडे सरखों पर जाय,
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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