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(१८०) ।शरीरलारेऽस्वर- कुलो भेदविचारः || शरीरमा अनन्त २ जीयो के, माटे ते औ०भरीरो असंख्यान न पाय छे ॥१९९॥ . ते बो००यी सैजस अने कार्मिण शरीर अनंतशुणां, परन्तु परस्पर तुल्य छे ( एटले भेटका ते शरीर के तेटलाज का शरीर पण थे, ) कारणके सर्व संसारि पाणीओने ए बे शरीर होय ज़ छे, ॥ २० ॥ ए प्रमाणे अल्पयाहुत्व संबंधि तफावत दर्शाध्यो.
९ अन्तरकृतभेदः- एक जीवनी अपेक्षाए औदा शरीरनु उत्कृष्ट अन्तर अन्तमहत अधिक ३३ सागरोपम २. श्री जीवाभिगमवृत्तिमा काछे के--" उस्कृष्टयी अन्तर्मुहूर्चाधिक ३३ सागरोपम ते आ प्रपाणे जाणवू के कोइक चारित्री जीव (मुनि) वैभारीर करीने अन्तर्मु० मुधी जीवीने आशुअपनो क्षय थवाथी ऋजुगतिए (सीधीगमिए) अनुत्तर देवमा उत्पन्न थायरते आश्रयी भाणबु)” ॥ वैक्रियशरीस्तुं अन्तर ( एक जीवनी अपेक्षाए ) वनस्पतिना कापस्थितिकाळ जेरल छे, अने आहारक देहन उत्कृष्ट अन्तर अर्धपद्दल
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१ पक जीये अमुक शरीर छोडया बाद तेज शरीर केटल काटे प्राप्त पाय ? ते अन्तर कहेवाय,
२ जोवाभिगम्वृत्तिमा कियशरीरको उत्कृष्टकाय स्थितिमी युक्ति पतापचा माटेना आ पाठमां अधिग्रहण प पर आपेल छ, तेथी मा पाठमां भ. विप्रगति शामारे कही ? विगेरे. कोर प्रकारनी शंफानो अवकाश नधी अमे तेथील वक्र गसिए अता जोके पकथी अधिक समय लागे छ, अने तेटला समय औदा० मा उ. अन्सारमा बधै तो विशेष उ. अन्तर प्राप्त याय परन्तु सेटला समय सध्या ना अन्तर्मु० ना अनेक मेष होवाची अ. म्त मुहूर्तमा बाध आपत्तो नपो,
३ अमुक जौष पनस्पतिमा जाने त्यां मरण पामीने पुनः वनस्पतिमा पारंवार उपजे तो एक मायलिकामा असंख्यासमा भागमा जेटला समय पाय तेटला पुद्गलपरावर्ती सुधी वारंवार बनस्पतियां जन्म मरण कर्या करे माटे तेटलो काळ वनस्पतिमा रहेका जीष ५ पैनु उ० अन्तर प्राप्त पाय,
५ आहारा शरीर चौदपूर्षधर चारिधीमुनिने ज होय अने चारित्रनुं उ० अन्तर अर्ध पु. परा० छे माटे आला. नुं अन्तर पण ते टाटु ज होय.