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(१३६) ॥ शरीरद्वारे प्रयोजनावगाहनाकृत मेदविचारः ॥ (द्वार मंथी फंइफ अधिक होय छ, क्रियशरीरनी उचाइ एक लाख (१५०००० ) योजनधी कइक अधिक होय हे, ॥ १२७ ॥ आहारकशरीरनी उंचाइ ! हाथ प्रमाण होय छे, अने सैंजस तथा कार्मण पचे शरीरभी अवगाहना केवलीभगवान्ने सम्यान समये संपूर्ण लोकाकाश प्रमाण होय छे. ॥१२८॥ इवे चीनी गीते फयु शरीर केटला आकाशमदेशमा अवगाह करी शके ( समाइ सके) ते कहे छे- आहारक शरीर सर्वथी भर आकाशमदेशर्मा रही शके, तेथी संख्यानगुण आकाशप्रदेशमा उत्कृष्ट औदारिक शरीर समाय एप कहेलुछे ॥१२९।। तेथी पण संख्यात गुण आकाशप्रदेशमा उत्कृष्ट चैक्रियशरीर रही शके, अने केवलि समद्घानमा छेल्लां चे शरीर (तका० ) संपूर्ण लोकाकाशमां ( पटले जवैथी असंख्य गुण मदेशमा ) अक्माष्ट करी रहे ले. ॥ १३० ।।
पुन: ए नेजस कार्मणनी अवगाहना उत्कृष्ट मृत्युसमुद्घान बखते पटले मरण पामीने घणे दुर क्षेत्रमा उपनमा उत्पत्तिस्थानसुधी दीर्घश्रेणिए १४ राज सुधी होप छ, अने मरण समुद्घान सिवायना पखनमा ए चे शरीरनी अव . गाहना स्वस्वभवधारणीय (औदा० वै०) देह जेटली पथासंभव होय छ, ॥१३॥ मरणान्तसमुद्घातं, गतानां देहिनां भवेत्। यावत्येकेन्द्रियादीना,
१ प्रमाणांगुलपडे १... योजन उंहा समुद्रादिनळाशयोमा यो उत्से. धांगुलषडे १००० योजन उंडा होय तेथे स्वामे कम विगेरे उगेली वनपति जळथी जेटली उपर आवीने रहे लेट ली अधिकता माणवी. अमे औजार मी डाकृ० इंचार पण त्या अ कमळधिगेरेनी जाणवी.
२ मनुष्य अने देष प याने उत्तरशक्रिय रखे तो शीषभागे सरखा आथे, परन्तु देवभूमिथी चार अंगुल उंचा बोचाधी देषना करता मनुष्पन डा. ग्वै. अंगुल अधिक होय छ, पज अधिकता,
३ उत्पत्तिकाल शिवारा WTO मी अघ भने अरकृषर वामें अपगाबमा । दाथ प्रमाण
है कारणके १ हाथ अटला आकाशमान रही शके हैं.
५ कारणके १००० योजन जेटला आकाशमा भौदा रहे छे अने से ! - . थथी १.० योजन सख्यात गुणाज छ. (बधीशमाह गुणा छै)।
६ कारण १००० योजमथी १००००० योजन संख्यात गुणा(सोगुणा)छे; मा अवगाहमामीमां पस्तुतः अषगाहलाना क्षेत्रफलमा भाबेला आकाशमदेशोनी संरुपानु अपचहत्व छ तोपण उंचाहनु अपबहुस्प मळत आयपाको उचाने अनुमारे क्षेत्रफळगत आकाशदेशनु अपय हुन्थ सममान्युं छे.