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॥ शरोरवारे स्वामिविषयकृतभेदविचारः ||
(द्वार
मतान्तरनी अपेक्षाए एक जीवने एक शरीर पण होय, कारणके तेओने मते परभवम जता जीवने मार्गमा केवळ अगर बीजुं (तैजस-फार्मेण ए बेनी अपेक्षाए बीजु अने सर्व शरीरनी अपेक्षाएं पांच) कार्मेण शरीर होय. ॥११७॥ ए स्वामि सम्बन्धि तफावत को.
४ विषयकृत भेद - पहला मौदारिक शरीरनी उत्कृष्टगत रुचक प बस (के जे १३ मा रुचक द्वीपमा छे) सुधी ले, अने ते गति नवाचारण मुनिनी अपेक्षाएं जाणो. ॥। ११८ ।। तथा विद्याचरण मुनि अने विद्याधरोनी अ. पेक्षा ८ मा नंदीश्वर श्रीसुधी जाणवी, ए निर्यग्गतिनो विषय कहो, अने ऊदुर्ध्वगति ते प्रणेनी अपेक्षाए (मेरु पर्वतना शिखर उपर रहेला ) पांडुकवन सुचीनी है. ।। ११९ ।। वैक्रिये शरीरनो (वियरा ) गतिविषय असंख्य दीपसमुद्र मुवीनो छे, अने आहारक शरीरनो निर्यग्गमिविषय महा विदेह सुधी छे. ||१२०|| तथा चोथा भने पाँचमा शरीरनो ( कानो ऊर्ध्वास्तिर्यग ) गति विषय सर्व लोक (१४ राज ) प्रमाण है, कारणके एक भत्रधी वीजा मनांजना जीवोने आ वे शरीर सावेज जनारी होय . ॥ १२१|| विषयकृतभेद को. धर्माधर्मार्जनं सौख्य-दुःखानुभव एव च । केवलज्ञान मुक्षादिप्राप्तिरायप्रयोजनम् ॥ १२२ ॥ एकानेकत्व सूक्ष्मत्व-स्थूलस्वादि नभोगतिः । संघसाहाय्यमित्यादि, वैक्रियस्य प्रयोजनम् ॥ ९२३ ॥ सूक्ष्मार्थसंशयच्छेदो, जिनेन्द्रद्भिविलोकन
१ जंघाना बळथी गगनमा गति करवामी लब्धिवाळा मुनि ते जंघा चारण मुनिं कषाय, विशिष्ट तपना आराधनथी मुनिने आ लब्धि थाय छे, २ विधामा (तपालना) यो गगनयां गति करवानी शक्तियाळा मुमि विद्याचरण मुनि कषाय.
३ १० शरीरनो ऊधोगति विषय उपसिनो अपेक्षा अनुत्तरणी सातमी पृथ्वी सुधी अने गममागमनक्रियाने आद्यपि ४ थी पृथ्विथी अच्युलसुधी ( देयोनी अपेक्षा ) जाणो.
४ आहारको ऊर्ध्वगसिविषय तथा अधोगति विषय जो के बताव्यो मधी तो पण लगभग केटापक योजन मंभवे ते पण कर्ण अपेक्षाए अथवा कुत्री विजय के जे समभूतलाधी लगभग एक हजार योजन उंडी छे त्यां रहेला तीर्थफर पांसे जत्रा आयामां उधोगति विषयविचारको अने कहेलो तिर्यग्विषय भरत पेरवतक्षेत्रनो अपेक्षा छे.