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________________ ( १६२ ) ॥ शरीरद्वारे कारणकृतादिभेदविचारः ॥ कमणत्वात् कार्मणं हीदं शरीरमनेकशक्तिगर्भत्वादनुकरोति विश्वकर्मणः, तदेव हि तथासमासादितपरिणति उपदिश्यते यदि तैजसशरीरतया ततो न कश्चिद्दोष इति । (सा० ७९ ) अत्र भूयान् विस्तरोऽस्ति स तु तत्त्वार्थवृत्तेरवसेय इति ॥ " अर्थ - प्रमाणे पांचे शरीरनुं स्वरूप करूं, अने हवे ते शरीरीना कारणादिकून (कारण वर्ग विशेष परस्पर सफावत ) ते दर्शांछ. ५ शरीरमां कारणादिवडे धयेलो भेद (ङार ० का ० ) + १ कारणभेदः - औदारिक शरीर स्थूल (बादर) लोबडे रा अने ते शिवायनां बीजां वैक्रियादिशरीर अनुक्रमे (वै० - आहा० अधिकाधिक सूक्ष्मपुगलनां बनेलां के ( अर्थात् आहा, अने आहाथी तेजस, अने तै०धी कार्मेण गोनुं बनेलुं छे. अहिं कारणमां शरीर जे पुद्गलो जाण ) || ११|| कारणकृत तफावत को २ प्रदेशसंख्याकृत भेद- श्रीजा शरीरसुधीर्ना शरीर अनुक्रमे पदेशोषडे असंख्यगुण छे तेथी तैजसने फार्मेण अनंतगुण के ||११२|| एप्रमाणे मदेशोनी संख्याथी बनेको तफावत आणतो. औदा थी बैं० ० था अधिक अधिक सूक्ष्मबनेल के तेलो ३ स्वामिकृतभेद - पहेलु औदारिक शरीर सर्वतिच अने सर्वमनुष्यने दोष के अने चैकशरीर देव तथा नारकने तथा केटलाक ० लब्धिवंत वायु (बादर पर्यायवायुकाय ) संहितिर्येच अने संज्ञिमनुष्योने पण होय . ॥११३॥ बळी ( आमशपध्यादिक तथा आहा० ) लब्धिवंत केलाएक चौद पूधर सुनिराजने आहारक शरीर होय छे, अने तेजस तथा कार्मण शरीर सर्वसंसारी जीवोने ( मोक्षे जता सुधी ) सर्वकाळ निधी होय छे, ॥ ११४ ॥ तत्वार्थभाष्यम तो कहां के के—केटलाएक आचार्य नयवादनी असाप कठे छे के एक फार्मणशरीरज जीवनी साथै अनादि काळथी संबंधवा छे, माटे अनादि संबंध जीवने एक फार्मेण शरीरनी साथेज छे, अने तेजस शरीर तो १ भावार्थ आ प्रमाणे- औदारिक अल्पपुदगलोनुं बने छे, थी - किय असंख्यगुणद्गलोनुं, तेथी आहारक असंख्यगुण पुद्गलोनुं, संथी तैजस अनन्तगुण पुष्गलो, भने तेथी कार्मण शरीर अनन्तगुण पुदुगलानुं बने है.
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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