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________________ ७.) . लोकनकाशे तृतीयः सर्गः॥ (सा. ६७) (१५७') जीव अकर्मभूमि मल्योपतः आयुयान दिया था मनुप्यनेविगे (युगलिकपणे) उत्पन थयो होय त्यारकाद शीघ अन्नहर्त जेटलुं सर्व जघन्य आयुष्य वर्जीने पाकीना अन्तम न्यून ३ पल्पोपप आयुष्यनी 'अपपतना करे" पुनः देव-मारक-अने असंख्य दर्पना आयुष्यवाळा युगलिक मनुष्यो तथा तियचो स्वायुष्य छ पास शेप र छते परभवनं आयुष्य बांधे के. वळी मतांतरे " उत्कृष्टधी ६ मास शेष रह्ये अने जघन्यथी अन्तर्मुहर्न शेष र नारफजीवो परभवनुं आयुष्य बांधे छे" प प्रमाणे भगवतिजीमा १४ मा शतकना पहेला उशामा कहरे . पुनः निरुपक्रमी आयुष्यवाला जीरो पोनाना पायुन्यनो श्रीजो भाग बाकी रहे त्यारेज निश्चयथी परभवतुं आयुष्य बांधे छे. ५ प्रमाणे पीजा केटलाक आचार्यों कहे . ( आ पनथी "६ मास शेष"नो नियम न रो). सथा जेटलं आयुष्य बाकी रा परभक्नुं आयुष्य वंशय तेटलो अबाधा काळ कवाय, ने अबाधाकाळ व्यतीत थया बाद ज ते आयुष्य उदयमां आवी शके के ॥ ९३ ॥ इति 'भवस्थिति स्वरूपम् ॥ १ अहिंशका पाय के आयुष्य जो निकाचित(निरूपकमी)होय तो अपवर्तना (अरुपता) कम पाय ? अने जो अपवर्समा थाय तो ले निकाचित कम करेवाय ? ५ संबंधमां समजवान पज छ के आयुष्यना निकाधि योग्य अध्यषतायो प्रत्येक स्थितिमा अनुकमें असंख्य असंख्य गुणा छे, माटे निकाचित आयुष्य पण सर्व पक सरलु महिं पण असंख्य तारतम्यता वाटु छजेमा कोहक निकाधित आयुष्य अपना साक्ष्य पण हाय, ने कोरक निका. चितकर्म तपादिके करीने पण अपवर्शना साध्य न होय, न्यादि विशेषता अनेक प्रकारे छे. आयुश्यना संबंधे तन्वार्थसूत्रमा जदी रोते मेद दविला छे ने आ प्रमाणे-आयुष्यना बे भेद छे तेमा पहेलं 'अपवर्तनीय' अने' पोमु 'अनपअसमीय' आयुष्य, तेमां अपवसनीय आयुष्य 'मोपक्रम' ए पका प्रकारर्नु छ, भने अनपवर्तनीय आयुध्य 'सोपक्रमी' भने "निवपक्रमी' पम के प्रकारनुं के तेनी स्थापना-- आयुष्य .. . अपवसनीय " ' अनपत्तनीय तोपक्रमी सोपकमी निरूषकमी
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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