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________________ ॥ मनस्थितिद्वार-उपकमस्वरूप निरूपणम ॥ द्वार पाळकने श्रावस्तीमा जितशत्रुराजानी सभामां मोकल्यो, घातांना प्रसंगमा पा. लके जैनमुमिओनी निन्दा सया मास्तिकमतनी स्थापना करया मांडी, स्कन्द कामारे पादमा हराधी निरुत्तर कों, मानभ्रष्ट थयो पण कुमारर्नु कांइ करवा समर्ध न होबाथी कोषसहित कुंमकारकटकमा गयो, पकदा श्रीमुनिसुअतस्वामिजी श्रावस्तिमां पधार्या,स्कन्दपकुमारे देशना साभली वैराग्यथी पांचमो राजकुमारो साथ दीक्षा गोधी, सकल सिद्धान्तनी सार पाम्या, उग्रविहा. गे थया, पांचसो शिष्योना आचार्य थया. पकदिवम श्रीनिमुन्नतस्वामिपासे आज्ञा मागी के- आपनी आRI होयतो दंडक राजा नथा पुरन्दरयशाने प्रतिबोधवा कुंभकारकटक तरफ विचार करता इच्छा राख्छु, प्रभुये फरमा. व्यु के सममे स्यां प्राणान्त उपसर्ग पर, स्कन्दकाचार्य पूछ\ र भाराधक थाश के नहि?' प्रभुए कहयुं 'तमारा शिवाय सर्व आराधक थशे' स्कन्दकाघायें कहयुमारी साहाय्यथी धीजा आराधक पणे ती पण हुं सर्व पाम्यो पप्रमाणे कदी प्रभुषम्दना करी ते तरफ विहार कर्यो, तमना आवधाना नायर सांभली पाठके पूर्वरथी सेमना उतरवामा उचानमा अनेक प्रकारला शस्त्री दटाच्या,शिष्यपरिचारसमेत आचार्य स्वां समषक्षामगरजनप्साहित दंडकराजा चांदी देशमा सांभळी आनम्वित थर पाछा गया, पालक पकांतमां राजाने कडधु आ आचार्य पाखंडी छे, मुनि नथी,आधारभ्र छ, सहस्रयांधी लहयाओमी साथे तमा राज्य संघाने आल्या. राजाने खातरो थवापाटे कार्यने घाने साधुभोने श्रीशास्थाने मोकळी पोतेज दाटेला शस्त्रो राजाने याताया, रा. जाप गुन्हेगार समजी शिक्षा करवा पालकने जसोप्या अने 'मने योग्य कागे तेम शिक्षा करजे' तेम हुकम आपी स्वस्थाने गया, पूर्वारी बंधी पापामा पालक तार्नु वैर. पाळषामो समय आणी माणस पीलवान यंध लावी एक एक अभिने यंत्रमा नाम्खा लाग्यो, स्कन्दफाचाय दरेकनिने निर्यामणर करा. वी, समाधि पमाडी, आलोयणा करावी जेथी दरेकमुनिओ थेत्रमा पीलाता छतों पण शुक ध्यान अग्निमां कम इन्धनने वाळी अपकथणिमां आरूढ थर अ. स्तक केटा मृतिपद पाम्या, आप्रमाणे से दुष्टपालके चारसा नवाणु मुनिओने यंत्रमा पोल्या अने स्कन्दकाचार्य निर्यामणा कगषी मुकिपदे पहचादशा, पटे वाकी रहेला पक लघु शिष्यने यंत्रमा नागषा तैयारी करता पालकने स्फ, ग्दकाचा प्रथम मने पोल पछी आ लघु मुनिने यंत्रमा नांसजे,प प्रमाण कमीछतां पण प्रथम शिष्यनेज जलदीयो यत्रमा नाल्यो, धेय राखी आचार्यभोप ते. ने पण निर्यामणा कराधी ते मोक्षपर पाम्यो, अही आचार्यश्रीन धर्य न रहे. पाथी अरे! आ दुरान्मानी केषी दुष्टता छे. तेम विचारनां कोग्निथी 'हे दुरारमन ई तारो षधकरनार थइश' तेम नियाj कर्यु, पापी पालके तैमने पण यंत्रमां पीक्या, मियाणामां संयमचिराधनाथी काल करी अग्निकुमारनिकायमा उ. पन्न भया, रुधिरची खरडायेक स्कन्दकाचार्यको ओघो हायनी प्रान्तिय गीध. पक्षिये लीधो परस्पर पक्षियो हडतां से ओधी स्कन्दकाचार्यनी हेन पुरंदर
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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