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________________ ७ मुं] ॥श्रीलोकपकाशे तनीयः सर्गः ॥ (सा० ५३) (१५३) - झेर अने हथीयार विगेरे निमित्तथी परण पाच निमितापाम, बी आई र करवायी अल्प आहार करवायी, घणो स्निग्ध (चीकणो) न पची शके तेवो भारे (सत्यवाळी) अने कक्ष (लूखो सारविनानो), विकारवाळो, बने अहितकर ( अपथ्य ) आहार करवायी जे मरण याप ने आहार बडे मरण कवाय ॥ ८२ ॥ शुळ विगेरेनी पीडाथी मरण याय ते वेदना पडे, मया खाडा-कूवामां पडवाथी-(पर्वतादि उपरथी संपापान करवापी ), जळमां इश्वाथी, फांसी खाचाथी इत्यादिक रीते जे मरण याय से पराघात उपक्रम वडे जाणधु. नधा सदिफना करडवायी, (अथवा विषकन्यादिना स्पर्शथी) मरण पाय ते स्पर्श उपक्रम वडे जाणवू ।। ८३ ॥ तथा शरीरमां कोइफ विकार यता घणा ग्वासोच्छ्वास चालवायी, अथवा वासो. पछ्वास एकदम रोफवापी जीव मरण पामे ते श्वासोच्छ्वास उपक्रम वडे जाणवू, माटे ५ साते उपक्रम जाणवा ।। ८४ ॥ वळी अनुपक्रम आयुष्यबाळा . ओने पण केटलाएकने ए उपक्रमो लागे छ, जेम स्पंदकाचार्यना [चरमशरीरी] शिष्योने यंश्मा पीलावं ययं ।। ८५ ॥ (तेसी निरूपक्रमी आयुष्यवंतने ए उपक्रमो लागे छ,) तो पण तेओने ते उपक्रमो आयुष्य तय यवामां कारणरूप नयी, परन्तु मात्र कष्ट आपनारा छे, ए प्रमाणे ते निरूपक्रमायुष्यवन जीवो पण सोपकम आयुध्यवाळा जीवोनी माफक मरण पामता देखाय छ || 451; १ केटलाएक कहै छे के आयुष्यनो आधार श्वासामधास उपर छे. पटले अमुक जीव आ भषमां आटला श्वामीच्छ्वास पूर्या कर्या बाद मरण पामी शके, अने अधुरा राणा होय तो मरण वव्रत जलवीथी श्वासोच्छ्वास ला पूर्ण करे, पम तेओन कहेयु सर्वथा अयोग्य छे, कारण के पूर्षभषमा मायुस्य. कम बांधती घखते जेटलो आयुष्यनां पुद्गलो उपार्जन कया है सेटलां अव. श्य भोगषषां पद्धे है, परन्तु ते अखले श्वासोच्छवासन निर्माण कर पण करेल मधी. पळी से कडोषींना आयुष्यवाळा अन्तर्मुसमात्रमा मरण पामे तो से जीवो श्वासोच्छवास केम पूरी शके ? इत्यादि अनेक विरोध दोबाथी श्वासोच्छवासमै आधारे आयुष्यनो नियम सर्वथा मथी, परन्तु आयुष्य त्रुट वामां उपर काली गैत प्रमाणे श्वासोच्छ्वास मिमिसमूत था शके 9. श्रा संबंधमा घणी विचार नवनाथविस्तरार्थमा करेली है, ज्यांधी जोवं. प्रावस्तीमगरीमा जिसशत्रनामें राजा हता, धारणी पट्टराणी, स्कन्दक पुत्र अने पुरन्दरयशा पुषी हता,स्कन्दककुमार श्रीमुनिसुव्रतस्वामिना उपदेशी तवमानसाथे प्रावधर्म पाभ्यो हतोपुरन्दरयशाने कुम्भकार कटकनगरना बंर. क राजा लाथे परपात्री ती, दंडकराजामा पालक नामे पुरोहित हतो,पकमत
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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