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________________ (१४२) ॥ पर्याप्तिद्वारविशेषविचारस्वरूपम् ॥ स्पारपछी अन्तमुहर्त प्रमाण आयुष्यना अराधाकात सधी जीने के. ॥ ३२ ।। त्यारवाद (अवाधाकाल पूर्ण यया पछी) बांधेला आयुष्यने उचित ने गनिमां जीव जाय छे, अन्यथा (प्रण पर्याप्तिओ पूर्ण कर्या शिवाय) जे जीवे आयुष्य चाँयु न. थी, तथा (अगर प्रण पर्याप्तिओ करी आयुष्य बांध्यु होय तो पण)जेणे तेने अपाषकाल पूर्ण कर्यों नथी ते जीव क्या ( कइ गनिमां) जाय ! ॥ ३३ ॥ श्री प्रज्ञापनासूत्रनी वृत्तिा पण तेमज फधुले के-"जे कारणधी सचे प्राणीमो परमवर्नु आयुष्य चांधीने ज मरण पामे , परन्तु बांध्या विना मरण न पामे, अने ते पण शरीर अने इन्द्रिय पर्याप्ति वडे पर्याप्ना थयेल जीवोने - (आयु) बंधाय छे, पण एथे पर्याप्तिो बड़े अपर्याप्त (अपूर्ण) रहेल जीगेने नहि " जे कारणे १ समययी मांडीने ? समय न्यून मुहूर्त सुधीनां असंरूप प्रकारनां अन्तर्मुहूचों छे. ॥ ३४ ॥ ते कारण माटे अन्न महर्च आयुष्यवाळा सहपृथ्वीकाप वगेरे जीवोना (आयुष्यना) भिन्न भिन्न प्रकारनां अन्नमुंहन होय नो तं युक्त रे. [अर्थात् एक अन्त महतं आयुष्यवाळा पण अनेक जीवोनुं आयुष्य परस्पर परखें होतुं नयी.] ॥ ३५ ॥ वळी पान्मा उत्पत्ति समयेज पोम पोमाने योग्य ते प. यातियो एक साथेन (सपकाळे ज ) करवा पांडे के ( प्रारम्भे के 1, परन्तु अनुक्रमे समाप्त थाय छे. ।। ३६ ॥ ते आ प्रमाणे-मयम ज आहारपर्यास्ति, तदनतर शरीरपर्याप्ति, तदनन्तर इन्द्रियपर्याप्सि ए प्रमाणे श्वासोच्छ्वास-भाषा-अने मन ए सब पाप्तियो अनुक्रमे संपूर्ण पाय छे. ।। ३७ ॥ त्या एक आहारपर्याप्ति प्रथम समये समाप्त याय छे. अने शेष ५ पप्लियो असंख्य समय प्रमाणे अन्न महर्ने अनुक्रमे संपूर्ण थाय छे. ॥ ३८ ॥ वळी समाप्तिनो ए अनुक्रम ( काळ ), औदारिक शरीरबाला जीवोनी अपेक्षाए जाणवो अने वैक्रिय मथा आहारक शरीस्वाळा जीवोनी पर्याप्तिओनी ममाप्तिनो अनुकम [काळ] आममाणे छ. ।।३५॥ एक शरीरपर्याप्सि अन्तर्मुहत्ते संपूर्ण पाप के, अने शेप ५ पर्यापानी अधिकारी य है, आयु यन्धने म्टायक अध्यवसायो पण त्यारेज आवे है, २ कर्म बांध्या पछी उश्यमांन आवे त्यां सुधीनो चलो काल ते अबाधाकाल कहेषाय , १ अर्थात् प्रथम समयगृहीत पुतलोना अबलम्बन य? जीषने गृहोनाहार ने ब्रलरम गणे परिणमाववामी शक्ति संपूर्ण प्राप्त धाय छ, अने शेष हालियो देश प्राप्त थाप है. नतर से ते शमि प्रायोग्य पदगलोनी समूह जेम जेम भेगी यतो जाय तेम तेम ते ते शक्ति अनुक्रमे प्रगर ( संपूण स्वकार्यममर्थ ) यती जाय प हेतुधी सर्व पर्याप्तिमा प्रारंभ समकाल, - अने समाप्ति अनुक्रमे कोहली छे.
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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