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________________ ( १४० ) ।। पर्याप्तारविशेपवर्णनम् ॥ म्रियन्ते येऽव्यपर्याप्ताः पर्याप्तित्रयमादिमम् । पूर्णीकृत्यैव न पुन -- रन्यथा सम्भवेन्मृतिः ॥ ३१ ॥ तथाहि ॥ पर्याप्तित्रययुक्तोऽन्त --र्मुहूर्तेनायुरग्रिमं । बद्ध्वा ततोऽन्तर्मुहूर्त्त -मबाधां तस्य जीवति 11 नी शक्ति पण अन्तर्मुहूर्त बाद प्राप्त धाय छतां शरीर रचनानो प्रारंभ (उपक्षणी पर्याप्तियोको प्रारंभ) तो प्रथम समधी शद थाय छे, अर्थात् प्रथमादिसमयगृहीत पुद्गलो ( प्रथम समयश्री भगना उपान्त्यसमय सुधी गृ डीत पुद्गलो ) शरीर पणे परिणमतां जाय छे तो शरीर रथवानी शक्ति प्राय (शरीर पर्याप्ति) या पडेल ते पुद्गलो शरीररूप केभी रीते परिणमे ? उत्तर- हे जिज्ञासु ! शरीरनामकर्मोदयमा कार्यरूप शरीर रचनानो प्रा. रंभ शो ( शरीरनामकर्मनो उदय भवना प्रथम समयेज होवाथी ) भवना प्रधम समयश्री या चुक्यों के, परन्तु तं शरीर ज्यां सुधी स्वकार्य (काययोग) करवाने असमर्थ छे, त्यां सुधी शरीरनी संपूर्ण रचना यह न कहेवाय, परम्सु अन्तर्मुहर्ते ज्यारे ते पुद्गलोपश्चयथी वृद्धि पामेलुं शरीर स्वकार्य करवा समर्थ थाय त्यारे शरीर संपूर्ण "कहानी दोषार्थी अन्तर्मुहूर्त बाद शरीरपर्याप्ति ( शरीर रचवानी शक्ति ) समाप्त पाय एम काम कोई विरोध नथी. "" 86 33 तथा उच्छवास नामकर्मबडे जीवने उड़वास लब्धि एटले पुगलो ने उपवास पणे परिणमाषी श्वासोच्छ्वास र मूकी शके पवी योग्यता प्राप्त थाय छे। अने ते योग्यतारूप लब्धि उच्छ्रयास लेषा मुकवामा व्यापार बिना सफल थाय नहि, अने ने उच्छवास लेषा मूकषानो व्यापार ते तथाविधशक्ति बिना पहले श्वासोच्छ्रयास पर्याप्ति विना होइ शके नहि, अने ते श्वा सोनामपतिरूप शक्ति श्वासोच्छवासपर्यादित नामकर्म विनाश महिमाटे सवाल पर्याप्तिनामकर्मगडे यामास पर्याप्ति पूर्ण थाय जेथी उच्छ्वास लेवानी शक्ति उत्पन्न घाय, अने ते शक्ति बाछो जांब उच्छवास नामक मंदिया प्रभावे श्वासोच्छ्रवास योग्य पुगी लइ शो षास पणे परिणमात्रे अबलंबे बने विम एम (प्रवासोच्छ्रासपणे ) परिणमाश्रादि क्रिया करवानी में शक्ति ते पर्याप्त कषाय, अने ए परि मनादि कियामां ने उच्छ्रासन नियतपणुं करनार ते उच्छ्वास नामकर्म आण जेथी उच्छ्वास पर्याप्त उच्छ्रयामपर्यादित नामकर्म उच्षाभ नामकर्म = अने उच्छ्रवास इत्यादि सबै भेदनी स्पष्ट रीतं भिन्नता समजी शकाय छ, १ कोइपण जीव आयुष्य बांध्या बाद कमीमां कभी अन्तर्मुहूर्त व्यतीत मेज मरण मे छे, परन्तु आयुष्य बांध्या बाद तुर्तज (अनन्तरादि समये ) मरण पासो नथी, अने र अन्तर्मुहूर्त्त "अबाधा काळ" पत्रा नामधी ओळखाय छे.
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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