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________________ 705989 || श्री लोकप्रकाशे द्वितीयः सर्गः || (सा० ५१) ( १३५ ) रिभिः ॥ ११ ॥ असमाप्य स्वपर्याप्तो स्त्रियन्ते येऽल्पजीविताः । लब्ध्या ते स्युरपर्याप्ता यथा निःस्वमनोरथाः ॥ १२ ॥ निव्वैर्त्ति तानि नाथापि, प्राणिभिः करणानि यैः । वेहाक्षादी (ख्या) नि करणापर्याप्तास्ते प्रकीर्त्तिताः ॥ १३ ॥ मियन्तेऽल्पायुषो लब्ध्य-- पर्याता इह यऽगिनः । तेऽपि भूत्वैव करण--पर्याप्ता नान्यथा पुनः ||१४ 1 अर्थ:- (भेदस्थानद्वार) जीवोना पोतपोतानी जानिने विषे जैत्रकार ने अहि भेद कहेवाय छे. तथा समुदयात स्वस्थान अने उपाए ऋण प्रकारे व्याप्त करेले क्षेत्र ते स्थान कहेवाय छे. ( विस्तारस्वरूप आगळ आवनार होवाथी अ संक्षेपधी है ! ॥ ६॥ (३ पर्याप्त द्वार) जेना पडे जीवो "पर्याप्त" कहेवाय ले ते पर्यासिओ हे, अनेए कारणथी जीवो पर्याप्त अने अपर्याप्त एम वे प्रकारना है. ॥ ७ ॥ त्यो जे tate पर्याप्त नाम कर्मना उदवडे स्वयोग्य पर्याप्तियो सुखपूर्वक सर्व संपूर्ण करी होय ते पर्याप्ता काग ॥८॥ बळी आपर्याप्ता जीनो लब्धि अने करणना भेदयी वे प्रकारमा छे. त्यां जे प्रथम भेदवाना लब्धिपर्याप्ता जीवो छे ते निश्रय स्वयोग्यप जियो समाप्त करीनेज परण पाने के परन्तु समाप्त कर्या विना मरण पावता नथी. ||२|| अने जे जीवोष शरीर भने इन्द्रियो वगैरे करणो रचेला ले नेओ करणोने (शरीर इन्द्रियादिने ) समाप्त करवाथी ( रचवाथी ) करणपर्याप्ता कद्देवाय ले. ॥१०॥ पुनः अपर्याप्ता जीव पण अने करणना भेदवडे वे प्रकारना का छे, ते मां जे तफावत श्रीगणधर महाराजे को छे ते सांभळो ! || ११|| निर्धन पुरुषोना मनोरथ प्रेम सफळ याय नहि तेम अल्प आयुष्यवाळा जे जीवो स्वयोग्य १-२ जेम बादर अग्नि जीषोनुं ॥ द्वीप प्रमाण स्वस्थान क्षेत्र अने क्यांग्यांथी आधीने बादर अग्नि पणे उत्पन्न याय त्यांथो मांडीने उत्पत्तिस्थान पर्येनुं उपपात क्षेत्र. ३ अहिं प्रश्ननो अवकाश के स्वयोग्य पर्याप्तियों पूर्ण महि वामां अने पूर्ण थयाम आयुध्यनी अल्पता तथा अधिकता ज हेतुरुप थशे तो पछी अपर्याप्त नाम कर्ममा उदयधडे स्वयोग्य पर्याप्तियो पूर्ण न थाथ, अने पर्याप्त नाम कर्मना उदयचडे पूर्ण थाय पम कद्देवानुं शुं प्रयोजन ? ( अर्थात् पर्याहियो पूर्ण यवामां अने नहिं यथामां पर्याप्त अपर्याप्त नाम कर्म नहि पण आयुष्यनी अधिकता अने अल्पताज हेतु रूप छे. )
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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