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________________ ( १२०) ॥ निरुपमसिद्धजीवमुखविचारः ॥ सिद्धगतिर्नु अघ० अन्वर १ समय अने ३० असर ६ मास सुधीर्नु छे. वळी सिद्धपरमात्माने च्यवन (सिद्धिगतिमाथी पुनः संसारमा आगमन )मो छे ज नहिं कारणके तेभो शाश्वत ( सादि अनन्त ) स्थिनिवाळा है. ॥ १४० ॥ (आ प्रमाणे निरन्तरसिद्धसमय संख्या तथा अन्तर-विरह कलो) सर्वथी अल्प नपुं० लिंगे सिद्ध छे, तेथी संख्यातगुण सीलिंगे सिद्ध के, यो पण संरूपातगुणा पुरुषलिंगे सिद्ध के ॥१४॥ अथवा बीजी रीने-सषयी अल्प दक्षिण अने उत्तर दिशामा ययेला सिद्ध छे, अने ते परस्पर तुल्य छे. नेयी संख्यातगुणा पूर्वदिशामां बयेला सिद्ध छे. अने तेथी विशेषाधिक [संपूर्ण बमणा नहिं ] पचिपदिशामां थयेला सिद्ध के. ॥१४२।। ( अल्पबहुत्व कई.) ॥ सिद्धपरमात्माना अनंतसुखनुं वर्णन ।। न तत्सुखं मनुष्याणां, देवानामपि नैव तत् । यत्सुखं सि. जीवानां, प्राप्तानां पदमव्ययम् ॥१४३॥ कालिकानुत्तरान्सनिर्जराणां त्रिकालजम् । भुक्तं भोग्यं भुज्यमान -मनन्तं नाम य सुखम् ॥ १४४ ॥ पिंडीकृतं तदेकत्रा-ऽनन्तर्वर्गश्च वर्गितम् । शिवसौख्यस्य समता, समते न कदाचन ॥१४५॥ सर्वाद्धा. पिडितः सिद्ध--सुखराशिविकल्पतः। अनन्सवर्गभक्तोऽपि, न मा१ थी ३२-८ ममय ७३ भी ८४-४ समय ३३ थी ४:- समय १५ पी १६-३ समय ४९ थी ६०-६ समय २७ थी १०२-२ समय ६१. थी ७२-५ समय १०३ थी १०४-१ समय १ अर्थात् कोइक पखत एवो अबसर आवे छे के कालमा वैचित्र्यधी मेम पक इन्द्र च्यच्या वाद बीजो इन्द्र उत्पन्न पचामा उत्कृष्ट अन्तर मासन परे छे. तेम छ मास सुधी (मा जगतमायो) कोरपण जीव मोक्षे जतो गधी. २ दक्षिणमा भरत अने उत्तरमा पेरावत सर्वशी न्यून मागा (पक एक खंड २२६ योजन अने ६ कला प्रमाण) कोषाथी, ते विशाओमां थोडा कीवो मोक्ष ज्ञाय, अने पूर्वमा पूर्वमहाविदेह क्षेत्र चौसठ खंड प्रमाण तथा सोळ विजयपालु भरतथी संख्यातगुण मोटुं क्षेत्र होबाथी संख्यासगुण अने पूर्वमहाधिदेही पश्चिम महाविदेउनी अमीन ऊ'डाइमा १ हजार योजन दाळ ऊतरती गयेली होवाथी तेपी विशेषाधिक. (बमणु म थाय त्यां सुधी विशेषाधिक कहेवाय'
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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