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॥ श्रीलोकमकाशे द्वितीयः सर्गः ॥ (सा०५१) (१९९) सिद्धिमा । यावत् ६. सुधी थी शमआत करवी, पांच समयमा १ यापन
पी. बारसम्पादो , म समयमा १ यावत् ९६ थी, बे समयमा १ यात्रत १०२ पी शराप्त करबी अने एक समयमा १ यावत् १०८ जीयो मोक्षे जाय पछी निश्चये अन्तर (विरह) प?" विशेष स्वरूप मिकासुप श्री स्थानांग सूत्रवृत्तिथी जोड़ ले, बळी श्री जिनभावगणि क्षमाश्रमण भगवासी रथेली श्रीवृहन्म प्रहणिनी श्रीमलयगिरि आचार्य भगवन्ते । व. नावेली वृत्तिमा उपरोक गाथानी टीकामा परही विशेष छे के " जी आठ समय सुधी निरन्तर सिद्धि होय तो प्रथम समये १ थी ३२ सुधीनी कोर पण अनियत संख्याये सिद्धि धाप, घोजे यायत, माठमे समरे पण तेज प्रमाणे १ थी ३२ सुधीनी कोरपण अनियत संग्यायेमिदिपद पामे, अने नवमै समये अन्तर पटे,तेमज जो सास समय सुधी सिद्धि प्रवाह चालु रहे सो प्रथम समये ३३ थी ४८ अथवा १ थी ४८ सुधोनी काइपण अनियत संख्याये सिद्धि पर पामे, तेज प्रमाणे बीजें यावत् सातमे समये पण ३३ थी ४८ अथवा १ थी ५८ सुधीनी कोइपण अनियत संख्याये मोक्षे जाय अने आठमें समये अवश्य अन्त. र पदे. तेम विचारवं, ( अहीं सात समयनी निरन्तर सिद्धि होय न्यारे सात पैकी कोरपण पक समये तत्समयमयख जणावेली ३३ थी ४८ पैकीनी संख्या मोक्ष जधी जाइए अन्यथा आट समय भने सात समयनो भेद न रहे सेम संमत्रे छ, के प्रमाणे आगळ पण विचारवं) आज शैलीयी छ समय निरन्तरमां ४९ थी ६० अथवा १ थी ६०, पांच लमयमा ६५ थी ७२ अथवा १ थी ७२, चार समयमा ७३ थी ८४ अथवा १ थी ५४, Uण समयमा ८५ थी ९६ अश्या १ थी ९६, बे समयमा ९७ थी २०२ अथवा थी १०२, अने पक समयमां १०३ थी १०८ अथवा १ थी १०८ जीबी सिद्धि पद पामे, पछी अवश्य अन्तर पडे, बळी केटलाक मीचे विलो विचारमंभष पण बनी शके नम अणाधे छे. " माठ समय निरन्तर सिद्धि प्रघाड चाललो होय म्यारे अर्याप्त प्रथम समये १ जीव मोक्षे गयो, श्रीजे समये १ जीष मोक्ष गयो, श्रीजे समये पण ३, चौथे समये पण यायत आठमा समप सुधी १-१ मोक्षे आ शके त्यारवान नवमे समये अन्तर पडे, प प्रमाणे पहेले समये २, बीज समये २ यावत् आठमा समय सुधी थे वे ( २-२) जीत्रीनो मोक्ष चालु रहे ने नवमे समये कोइ पण जीव मोक्ष न जाय. प रीते पण प्रणनी-चार चारनी थावत् ३२-३२ सुधीनी संख्यावाळा जीयो आठ आठ समय सुधी मोक्ष जा शके अने ९ मे समये अवश्य विरद्ध पहे अर्थात् कोरपण मोके न जाय,
आ ज शलीये सात समयसिधि आदिमा ३३ विगैरेथी ४८ विगेरे सुधी अथवा १ विगैरेथी ४८ विगेरे सुधीनी संख्या लैंधी, तस्य श्रीकेलि महाराज जाणे. ( प्रन्योक्त निरन्तर सिद्धि संख्यायन्त्र.)