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( ११८) ॥ सिद्धयमानीवपूरस्था-सिद्धाभबिधारः ॥ समाः । प्राच्या संख्यगुणाः पश्चि-मायां विशेषतोऽधिकाः ।।१४२॥
पुनः प्रथमसंघयण ( पञऋषभनाराच ) बाळा ज सिद्धिपद पामे छे. पण पीना( पांच संघ. पोळा ) नहि. अने संस्थाननो नियम नथी कारण के छए संस्थानमां मोक्ष होय छे. ।। १३१ ॥ बळी उत्कृ. पूर्वकोडि आयुष्याला मोक्ष पामे के पण एयी अधिक आयुष्यकाळाओ नहि. अने . जघन्पधी ९ वर्षना आयुध्यबाळा मोक्ष पामे छे. पण पथी अल्प आयुष्यवाला नहि ॥१३२॥ ॥ कइ संख्याए केटला समय सुधी मोक्षे जाय ? ते कहे . ॥
? थी ३२ मुधीनी संख्यावाळा जीवो जो पोक्षे जाय तो निरन्तर (लगोलग ) आठ समप सुधी पोक्षे जाय त्यारवाद नवमे समये निश्चयथी अन्तर पड़े ( अर्थात् कोइ मोक्षे न जाय ) ॥ १३३ ॥ ३३ थी ४८ सुधीना मोक्षे जाय तो निरन्तर ७ सपय सुधी जाय अने आठमे समये निथय अन्नर पढे || १३४ ॥ ४९ थी ६० सुधीनी संख्यावाला जीवो जो मोक्षे जाय नो निरन्तर ३ समय मुधी जाय अने सासमे समये अन्तर पहे ॥ १३५ ॥ पुनः ६१ थी ७२ सुधीना पांच समय सूवी मोक्षे जाय अने छठे समये अवष्य अन्नर पड़े ॥ १७६ ॥ ७३ थी ८४ सुधीना चार सय सुधी मोक्षे जाग अने पांचमे समये अन्तर पडे ॥ १३७ ॥ ८५ यी ९६ सधीना ३ समय मुधी मोक्षे जाय, ९७ थी १०२ सुधीना के समय मोक्षे जाप ॥ १३८ ॥ अने १०३ यी १०८ सुधीना समय मोक्षे माय अने पीजे समये अवश्य अन्तर पडे. ॥ १३९ ।।
१ भीस्थामांगसूत्रवृत्तिमादिमां श्रीअभयदेवमूरि आदि आचार्य भगवती यतीसा अडयाला, मठ्ठी बायत्तरी य, वोद्भवा । चुलमोह छुण, दुरदियमत्सरसयंच ॥१॥ प प्रमाणे श्री जिमभद्रगणिक्षमाश्रमण भगवम्तनी गाथा लखी सेभी टीका करतां उपरनो विचार दाधी घिशपमा नीचे प्रमाणे भाष अणावे छ, “वीजा आचार्यों आ गाधानो अर्थ पम पण करे छे के. जो आठ लमय सुधी निरन्तर सिद्धिप्रवाह चालु रहे मो पहेले समये १ थी ३२, पीजे लमये १ थी ४८, पीजे १ थी ६०, चौथे १ भी ७२, पधिमे १ थी ८४, छट्टे १ थी ९६, मातमे १ थी १०२, अंने आठमे ममये १ थी १०८ सुधी जीयो मोक्ष जाय अने नवमे समय अन्तर पडे, आ ज प्रमाणे जो निरन्तर सात समय सिद्धि प्रवाह चाले तो पहले समये १ थी ५८, बीजे १थी ६०.प्रोजे १थी ७२, चोथे १ थी ८४, पांच में १ थी ९६, छठे १ थी १०२ अने सानमे ममये १ यो १०८ सिद्ध संख्या जाणत्री, आज गतिधी निरन्तर छ ममय