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________________ (१०४) ॥ जीवनिर्गममार्ग-तहेतुकगतिज्ञानविचारः ॥ वाघना पग सरखा परंडबीजना बन्धननो छेद पवाथो एरंडवीजनी, यन्त्रपन्धननो छेद थयाधी काठनी अने पेडायन्धननी छेद थवाथी पे. डापुटनी जेम गति धाय के तेम सिद्धनी पण गति थाय छे, ए वात्पर्य छे, ॥ (अर्ध्वगौरवदेवस्वरूप४) वषा ऊर्ध्वगतिरूपसरूप धर्मवाळा जीवो के अने मेंधोगतिरूप मुख्यधर्मवाळा पुदलो के, एम जिनोश्वरोए कहथु छे. ॥ ९० ॥ अर्थात् जीवोनो धर्म-स्वभाव ऊर्ध्वगमन करवानी गौरवतावालो मुरूयतावालो छे, अने पुद्गलो अधोगति स्वभाववालाछे. ए श्री सर्वझर्नु वचन के. जेम पापाणनी अधोगति, वायुनी तिर्यग्गति, अने अग्निज्वाळानी ऊर्ध्वगति स्वभारथीज प्रवः छे, नेम आत्मानी पण अर्ध्वगति स्वभावधीज छे. ॥११॥ ए कारणथी जीवोन जे गतित्रै कृत्य ( स्वाभाविकगति ऊय छे छतां तिर्यगादि गमन करवारूप गतिनो विकार ) देखाप छे ते कर्मना पनियातथी अने प्रयोगथी ( अन्यनी मरणाथी- मयस्नथी ) गतिविकार मनाय छे. ॥ ९२ ॥ ए प्रमाणे जीवोनी फर्मथी उत्पन्न थयेली गति अधोतिर्यग् अने अर्व एम प्रण कारनी छे.परन्तु कर्मरहित जीयोनी तो ऊर्ध्वगतिम होय के. ॥१३॥ __ तत्रापि गच्छतः सिद्धि, संयतस्य महात्मनः । सर्वैरंगैर्विनिर्याति, चेतनस्तनुपंजरात् ॥ ९४ ॥ तदुक्तं स्थानांगपंचमस्थानके [३ उद्दे० सू० ४६१]पञ्चविहे जीवस्स णिजाणमग्गे पन्नते, तंजहा-पापहि, उरूहिं, उरेणं, सिरेणं, सबंगेहिं ॥ पाएहिं निजायमाणे निरयगामी भवति, उरूहि निज्जायमाणे तिरियगामी भवति, उरेणं निजायमाणे भणुयगामो भवति, सिरेणं निजायमाणे देवगामी भवति, सवंगेहिं णिज्जायमाणे सिद्धिगतिपजत्रसाणे पपणते ॥ [सा० ३३] (पञ्चविधो जीवस्य निर्याणमार्गः । प्रज्ञप्तः, तयथा-पादाभ्यां उरुभ्यां उरसा, शिरसा, सर्वाङ्गैः । पादाभ्यां निर्यान् नरकगामी भवति, उरुभ्यां निर्यान् तिर्यग्गामी भवति, उरसा निर्यान् मनुष्यगामी भवति, शिरसा निर्यान् देवगामी भवति, सर्वाङ्गनिर्यान् सिद्धिगतिपर्यवसानः प्रज्ञतः) भवो
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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