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________________ F7... .. -- ॥ लोकप्रकाशे दिनीयः सर्गः ॥ (सा. २०) (१७) रलेक अंशे ) अनाप्त ( नहिं हंकायेली ) होय छे, अने जो तेम न होय तो रात्रि अने दिवसमा कापण भेद न होय. ॥ ५९ ।। ( अर्थात् दिवस अने रात्रि पन्ने सरखांज थइ जाय.) वळी आ अति अल्प ज्ञानमात्रा (काननो अंश) मूक्ष्म कन्धिअपर्याप्त निगोदने भवना प्रथम समये होय छे. ॥६०॥ तेथी शेष एकेन्द्रिय द्वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय चरिंद्रिय अने पंचेन्द्रिय जीवोर्मा अनुक्रमे एक मात्राए बधती इन्द्रियलब्धि अने योगलधिनी वृद्धिनो अपेक्षाए ॥६१॥ क्षयोपशमना विचित्रपणाथी अनेक रूपने ( प्रकारने ) धारण करती एवी ने ज्ञानमात्रा अनुक्रमे (वधतां) घानी कर्मना अपवडे सर्व शेषपदार्थोने जाणनारी थाय छे. ॥ ६२ ।। प्रश्न-जो ए प्रमाणे आत्मान ज्ञान एज लक्षण कडेवाय तो सास्ना ( गळानी गोदही) अने वृषभनी "पठे आत्मा अने ज्ञान वे अभिन्न (एकज) होइ शके, ।। ३३ ।। अने ए प्रमाणे होवायी भात्माने समस्तपदार्थने प्रकाश करनार पर्बु मान सदाकाळ होय, जे कारणथी "ज्ञानरूप एवो आत्मा जाणतो नधी" एम कहे, ते युधिने नहि महन करना एटले युक्ति शून्य थाय छे.॥६४ावळी शानरूप एवा आत्माने "संशय-अव्यक्त ( अस्पष्ट ) बोध-अबोध (अजाणपणुं) अने विपरीत योध केवीरीते होय ? ( वळी ज्ञानस्वरूप आत्माने निस्मरण पण केम पाय? विगेरे दोषो पण जाणवा)॥६५|| उत्तर-आ आत्मानं ज्ञान सरूप होते छते पण निश्चय ज्ञानावरणीयादि कर्मना यशही निरन्तर उपयोग होतो नयी ॥६६ ।। ते या प्रमाणे-आत्मा मध्यभागे रहेला आठ प्रदेशोने ( रुचक प्रदे १ त्यारबाद वितीयादि समये एकेक ज्ञाममात्रा बधती आय छ, २ एकेक मात्राए ज्ञानवृद्धि लम्धिअप. सूक्ष्म निगोदने हितोयादि समये होय छे, छतां मीन्द्रियादि जीवोने पण मात्रावृद्धि कही तो अहिं व्यवहारथी में गोषने प्रथम समये जेटल जघन्य ज्ञान होय तेनाथी विमीयादि समय जेटलं शान वधे ते हरेक वृद्धिस्थानो सामनी मात्रा तरीक गणीए तो संगयी सके छे, पुनः अमुक जघन्यज्ञानवाला जीवथी कंडक अधिक ज्ञानघाळा श्रीजा जीषमा पण जे जाननी अधिकता ते पण जीवोमा परस्पगपेक्षाप सरनमात्रा गणी शकाय. ३ अर्थात् जोत्रामा जेम जेम इन्द्रिय लब्धि अंने योगलब्धिमी वृद्धि यती जाय तेम तेम ज्ञानमात्रा पण बघती शाय, जेम पळवनी गळामी गोदडीयो यचद भिन्न नी तम.
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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