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(९६ ) ॥ जीवास्तिकाय-तालक्षणवर्णनम् ॥ ___ अर्थ-इये जीवास्तिकायन स्वरूप कहुं. स्यां “धेसनालक्षणवालो ते जीव" ए प्रमाणे जीवनु सामान्य लक्षण ॥५॥अने मतिज्ञान-श्रुतज्ञान-अवधि-ज्ञान-मनापर्यवज्ञान-केवलज्ञान(ए ५मान)मतिअज्ञान-श्रुतअज्ञान-विभंगवान (ए ३ अज्ञान) चक्षुदर्शन-अचक्षुदर्शन-अवधिदर्शन-अने केवलदर्शन (९४ दर्शन) ए १२ उपयोग ते जीवनु विशेष लक्षण छ.॥५४-५५॥ त्रणे जगतमां उपयोगरहित एवो कोइ पण जीव नथी जे कारणधी निगोदजीवने (लन्धि अपर्याप्त सूक्ष्म साधारणवनस्पति जीवने भवना प्रथम समये) पण अक्षरनो (ज्ञाननो) अनमो भाग उघाहो छे. ॥५६॥ ते अवरना अनंतमा भाग जेटला अल्पज्ञानने प्रण लोकमां वर्तता अने कर्मत्वने प्राप्त भयेला कोइपण पुद्गलो आवरषाने (आच्छादित करवाने-ढाकवाने)समर्थ नथी,५७॥ अने जो ए अक्षरनो अनंतमो भाग पण अबराइ जाय तो जीव अने अजीवमा काइपण भेद न पढी सके. अहीं अक्षर पटले साकारोपयोग अने निराकारोपयोग, ॥ ५८॥ (अर्थात् अक्षर-शानोपयोग अने दर्शनोपयोग जामवी. ) अतिमा मेघद तपापेछा रखा सुधली प्रभा पण कंडक (के
१ माथी षस्तु जणाय (लक्ष्यते पवनेनेति, असाधारणधी लक्षणम् ) तेवो असाधारण (जेनुं लक्षण करषानुं दोय ते वस्तुथी अन्यमा नहि रहेनार ) जे धर्म से लक्षण कषाय, लक्षणर्नु इतरभेद ज्ञान फल छे अने ते लक्षण अध्याप्ति-अतिव्याप्ति-असंभव पण दोष रहित होई जोइये, विदोप रहित लक्षण तेज सलक्षण कवाय, जे वस्तूनुं लक्षण पांधहोय तेना अमुक अंशमा रहेg भने अमुकमां न रहेयु ते अभ्याक्ति, लक्ष्यथो अधिकमा रहेयु ते अति व्याप्ति, लक्ष्य मात्रमा न रहे ते असंभव, आ संबंधी विशेष वर्णन वृष्टान्त पुरःसर-अनुमानादि साये जो होय तेणे नियतव विस्तारार्थमा पोखमी गाथाना त्रिस्तरार्थनी टिप्पणीयी जाणी लेव, मसाधारण धर्म पण वे प्रकारे छ १ सामान्य धर्म, २ विशेष धर्म, जेम वर्ण अ पुगतनो सामान्य धर्म, अने कृष्ण, नील, पीत विगैरे विशेष धर्मो छे, सामान्य धर्म गुण संशाथी ओळखाय छ. अने विशेष धर्म पर्याय शब्दशी ओळखाय छे. आधी यस्तुने ओळखाधनार सामान्य धर्म ( गुण ) ते सामान्य लक्षण अने वस्तु ओळसाषगार विशेष धर्म (पर्याय) ते विशेष लक्षण, चसम्यो जीधनो सामान्य धर्म अने उपयोगांजे विशेष धर्म छे. अथवा. सर्य जीवमात्रमा अने प लक्षण व्याप्त था शके छ (लागु पढी शके छे.) सर्वदा माटे सामान्यलक्षण कडेवाय. अन १२ उपयोगमाथी कोइ जीधन को उपयोग अने कार जीवन कोड उपयोग, पण मबने तथा सर्वदा एका उपयोग होतो नयी माटे विशेषलक्षण कईशाय.
* आर्नु विशेषस्वरूप श्रीजा सर्गमा विस्तारथी जोर लेव.