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________________ ॥अथ द्वितीयः सर्गः ॥ 5555 जम " प्रथम सर्गमा सर्व ग्रंथोपयोगि अगुलादि-योजनादि-पक्ष्योपमादि संख्यातादिनु स्वरूप प्रतिपादन फयु, हवे अन्य वाच्य जे लोकस्वरूप, लोकना द्रव्य क्षेत्र काल भाव मेदो, तदन्तर्गत द्रव्यलोक वाच्य पदन्यभेदो-अस्तिकायना मकारो तथा तेनु विस्तार वर्णन अने ठेवटे जीवास्तिकायना मेदरूप महा में. गलमय सिद्धजीवन दार-प्रतिहारो सष्टिन विस्तारयी आ सर्गमा वर्णन करायछे. स्तुमः शङ्खेश्वरं पाव, मध्यलोके प्रतिष्ठितम् । देहलीदीपकन्यायाद, भुवनत्रयदीपकम् ॥ १॥ प्रस्तूयतेऽथ प्रकृत, स्वरूपं खोकगोचरम् । द्रव्यतः क्षेत्रतः काल-भावतस्तच्चतुर्विधम् ॥२॥ एकः पञ्चास्तिकायात्मा, द्रव्यतो लोक इष्यते । योजनानामसंख्येयाः, कोटयः क्षेत्रतोऽभितः ॥३॥ कालतोऽभूच भाव्यस्ति, भावतोऽनन्तपर्यवः । लोकशब्दप्ररूप्यास्ति-कायस्थगुणपर्यवैः ॥ ४ ॥ अर्थ-घरना उमरामा रहेलो दीपक जेम घरनी सहारना भागा तथा आखा घरमा प्रकाश फरे छे तेम देहलीदीपक' न्याययी मध्यलोकयां रहया छनां अणे भुवनमा प्रकाश करनार श्री शंखेश्वरपार्श्वनाथनी स्तवना करीए छोए ॥१॥ हये कहेवा पांडेलुं लोक संबंधि स्वरूप विस्तास्थी कडेवाग छे, ते लोकस्वरूप द्रव्यथी-क्षत्रथी-काळधी-अने भावधी एम चार प्रकारचें छे. ॥२ ॥ त्या पशास्तिकायरूप कोक ते द्रव्यलोक, द्रव्यथी एक छे. क्षेत्रधी १ श्रीशंखेश्वर पाश्चनाय भगवान्नु मनोहर चस्प दीयार देशमा श्रीशंखेश्वर गाममां विषमान छ. जिनप्रतिमा अने साक्षात् जिनर्नु समानपणुं के ते संधी तथा श्रीशंग्वेश्वरपाचमान संबंधी अपूर्ष वर्णन प्रथम मर्गना मंगलापरणमा विस्तारथी भापयामां आव्यु छे त्यांची जोर ई.
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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