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________________ ॥ संख्यातादिमेदविचार तथा प्रानभाव कोष्टक ॥ (७९) ६ उ० यु० अनंत न्यून ज. अनंतानंत तुल्य. ७ जा अनंतानंत--ज. यु. अनंतना वर्ग प्रमाण, ८म० अनंतानंत- मुगम छे. [२२ जीव संख्या] ९ उ० अनंतानंत-ज. अनंतानननो त्रिवर्ग करी ६ वस्तुना अनंत प्रक्षेपवा प्रमाण, ॥ संख्यातादिकमां प्राप्तभाव ॥ जप युक्त असं०-एक आवलिकाना समय. जप युक्त अनंत- अभव्य जीव, मध्यम युक्त अनंत--सम्यकवादिपनिन जीवो, भने सर्व सिद्ध. मध्यम अनंतानंतर चादरपर्याप्त वनस्पति. २ चादर पर्याप्त, ३ अपर्याम पादर वनस्पति, ४ वादर अपर्याप्त, ५ बादर,६ सूक्ष्म अपयौत वनस्पति, ७ सूक्ष्म अपर्यात, ८ सुक्ष्मपर्याप्त वनस्पति, ९ पर्याप्त सूक्ष्म, १० बम, ११ भव्य, १२ निगोद, १३ वनस्पति, १४ पकेन्द्रिय, १५ निर्यच, १६ मिथ्यादृष्टि, १७ अविरत, १८ सकपायी, १९. छमस्थ, २० सयोगी, २१ संसारी, २२ सर्व जीव. स्वप्रतिबोधिताकन्यरतपादत्ताहिंसा--अनादिमंसिरश्रीनसचाकश्रीशजयादितीर्थस्वायनीकरणम्फुरन्मान जगद्गुरुविरुदधारफमहाप्रभावतपागच्छाचार्यश्रीविजयहीरसूरीश्वर शिष्यमहोपाध्यायश्रीफीतिविजयगणिपिनेयावतंस-अनेकग्रन्थसन्दर्भलब्धयशोधवलीकृत दिखामंडलमहोपाध्यायश्रीविनपविजयगणिविरचिनशाखसन्दोहोपनिषद्भूत--निखिलसवप्रकाशनप्रदीप-लोकमकाशग्रन्थपथपविभागद्रव्यलोकप्रकाशे यन्त्रचित्रालंकृतभाषानुवादविभूषित: प्रथम सर्गः समाप्तः ॥ सर्गनिष्कर्ष, । अंगुलयोजनरज्ज-पल्याधिनिरूपणानि गुणाकारः ॥ विषयसूची | भागाद्वतिसंख्यया-संख्या मन्तानि धादिमे सर्गे ॥ १ ॥ जगद्गुरुधिरुव तथा फरमानमा पुगषा मोथा होय तो ओ होर सौभाग्य, पिअयप्रशस्ति विगेरे प्रायः समानकालीन प्रन्यो, असल परवानाको पण शेठ, आणन्दजी कल्याणजीना अचळ चोपडे मोजुद छ.
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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