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________________ ( ७६ ) ९ १० ११ अप०सु०धन अप० सूक्ष्म सूक्ष्म प० वनस्पति १२ पर्याप्त १३ सूक्ष्म भव्य १५ निगोद जीव १६ वनस्पति पत्रिय १८ तिर्यश १९ मिध्यादृष्टि こ ૨૦ अविरत २१ सकषायी 國落 २३ सयोगी २४. संसारी २५ सर्वक्षीष तेथी असं० तेथी विशेषाधिक लेखी 13 तेथी विशेषाधिक 23 +2 || अनन्तजीपाल्पा बहुत्वयन्त्र || F " गुण " " " 31 29 बादरथी सूक्ष्म अप बन० अ० गुण दोषार्थी सू० प० पृथ्वीकाया दिन प्रक्षेप करवाथी, "" प्रा०भिप्राये सूक्ष्ममां एकेक अप भी निभाए संख्यानपर्या॰ मी ऊत्पत्ति होषाथी (आसा. वृत्ति अभिमाये असंख्य तभी उत्पत्ति कही छे ) पृथ्वीकायादिमा म करवायी ट अपर्याप्त सूक्ष्मय्यादीनो प्रसेष करवायी चोथा अनंत जेटला अल्प अभव्यो सिवाय सर्वे भव्य होवाथी, निगोदान्तर्गत अभव्यजीवराशिनी पण प्रक्षेप करवाथी, प्रत्येक वनस्पतिनो पण प्रक्षेप करवायी. are अने सू० पन्ने पृथ्वीकायादिनो प्र० करषार्थी अपर्या० द्वीन्द्रियादिवस निर्यचोनो प्रक्षेप करवायी. अपति पयो से सम्यग्दृष्टिआदि छे से बाद करी धारेगतिमा सिस्याओं गजवाबी अविरत दोनो प्रक्षेप करणाथो देशविस्ताविकतो (५ थी १० गुण स्था० सुधीभो) प्रक्षेप करवायी I 'P' उपशान्तमोही उ० ५४ अने क्षीणमोही उ० १०८ नो प्रक्षेप करवाथी. योगी केवळ जघ० २ को उत्कृ० ९ कोट नोपक्षेप करवायी अयोगिकेवलि उ १२८नो प्रक्षेप करवाथी. पूर्वोक्त ३ नंवरती संख्याषाळा सिद्धनां पण प्रक्षेप करवायी.
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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