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॥ लोकपकाशे प्रथमः सर्गः ॥(सा० २१) (७५) पांचमे अनन्ते (म० अनन्त घेटला ,अने शेष पर्याप्तवारपनस्पत्यादि २२वस्तु [जीवो] आठमे अनन्ते (म० अनन्तानन्त प्रमाण).॥२०९॥ते २२ वस्तुओ आ प्रमाणे? पादरपर्याप्तवनस्पति-रमादरपर्याप्ताजीव-३ अपर्याप्तपादरवनसवि-४ पादरअपर्याप्वाजीव-५ सर्व पादरणीव-६ सूक्ष्मअपर्याप्त वनस्पति-७ मूक्षाअपर्याप्ता-८ सूक्ष्मपर्याप्तवनस्पति-९ पर्याप्तभूक्ष्मजीवो-१० सर्व सूक्ष्मजीवो-११ भव्यजीवो-१२ निगोदजीवो-१३ वनस्पतिजीयो-१४ एकेन्द्रियजीबो-१५ वियंचमीय--१६ मिथ्याष्टिजीर-१५॥ अविरतडीट- मागीलीद..१९ प्रास्थनीव-२० सयोगीजीव-२१ संसारीजीव-अने २२ सर्वजीव. ए अनुक्रमे अधिक अधिक एका बावीस पदार्थ आदमे अनन्ते के ॥२१०-११-१२॥ इत्यादि जे प. दार्थ जे संख्यास्थाने वर्ततो होय ते पदार्थ ते संख्यास्थाने विचारवो. ( अर्थात्
आठमे अनन्ते आ २२ अ"पदार्थ के पम नयी वीजा पण पुरस्त काळ विगेरे के. पण जीवापेक्षाए २२ छे, तेम जाणवु)प प्रमाणे चालु विषयने(प्रन्यने)उपयोगी पर्छ अङ्गुलादिकतुं प्रमाण में सर्ववना वचनने अनुसरीने कर्यु ले. वे आगमना माणकारोप (पीजे पक्षे-कामना जाणनाराओर)भंडारमा रहेला द्रव्यनी(घननी)माफक योग्यस्थाने जोदबु.।।२१३॥ (अनन्तमा प्राप्त थता जीवोना अल्पवाहुत्य
नो यन्त्र) संख्या माम । अल्पवहत्व | | १ | अभय चतुर्थ अनन्ते जघन्ययुक्त अनन्तप्रमाण होवाची,
सम्यम्वृष्टया- पांचमा , दि पतित (अभ अर्म)
अभव्यथी अनन्तगुण होवाधी, सिर
पाथमा अनन्ते सम्म पतितथी अनन्तगुण हे.)
तिथी अभंग सम्प० पाततथा अनन्तगुण ७.) पर्याप्त पा० तेथी मन०गु० आठमा अनन्तप्रमाण होवाधी. (सिखो करता वनस्पति आठमा अनन्ते एक गिगोपा पण अनन्तगुण जीवो छै. वा० पर्याप्त विशेषाधिक
| वा. पर्या. पृथ्वीकायादि प्रक्षेपपाथी
तथी पकेक बा० निगोइपर्यानी निमार मक ६ | पा०अप०वम०
असं० गुण | अस० वा. अप. निमोद होषाधी.
तेथी | बापर अप०
मिशेलविषा० अप० पृथ्वीकायाधिको प्रक्षेप करबापी. । " । पर्या० अपर्याप्त पम्मे पादरमा प्रक्षेपणी
कारण
H
बाद