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पञ्चत्तगाथि ॥ एतेसि णं भंते! पुढचिकाइयाणं पजत्तमाण अपज्जत्तगाण य कपरेरहितो अप्पा वा एवं जाव विसेसाहिया?, गोयमा! सव्वस्थोवा पुनविकाइया अपजसगा पुदविकाझ्या पत्रतगा संखेजगुणा, एतेसि पं० सम्वत्थोवा आउकाइया अपजसमा प्रबत्तगा संखेनगुणा जाप घणस्सतिकाइयावि, सव्वस्थोवा तसकाइया पद्धत्तगा तसफाइया अपजसगा असंखेनगुणा ॥ एएसिणं भंते ! पुढविकाइयाणं जाव तसकाइयाणं पज्जत्तगअपजसगाण य कयोसहिंतो अप्पा वा ४१, सव्यस्थोवा ससकाइया पन्जसगा तसकाइया अपजसगा असंखेनगुणा तेउकाइया अपनत्ता असंखजगुणा पुढ विकाइया आउकाइया वाउछाइया अपनत्तगा विसेसाहिया तेउकाइया पाजतगा संखेनगुणा पुढविआउवाउपजत्तगा विसेसाहिया, वणस्सतिकाझ्या अपजत्तगा अणंतगुणा, सकाइया अपजसगाविसेसाहिया, वणस्सतिकाइया पजसगा संखेनगुणा, सकाइया पज्जत्तगा विसेसाहिया ॥ (सूर्य २२९) सुहुमस्स णं भंते! केवतियं कालं ठिती पपणत्ता, गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुलुत्तं उक्कोसेणवि अंतोमुहसं एवं जाव मुहमणिओयस्स, एवं अपज
सगाणवि पज्जत्तगाणवि जहण्णेणवि उक्कोसेणवि अंतोमुत्सं ॥ (सू० २३०) 'एएसि णमित्यादि, सर्वस्तोकास्त्रसकायिकाः, द्वीन्द्रियादीनामेव सकायस्वात् तेषां च शेषकायापेक्षयाऽत्सवात् , तेभ्यस्तेजस्का