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________________ जलवायु और शीत-उष्ण कटिबंध की अपेक्षा से ही है। प्राचीन एवं आधुनिक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विज्ञान ने कैंसर, दमा, श्वांस, हृदय, प्रदर, उन्माद, हिस्टीरिया आदि रोगों के लिए गोमूत्र, स्वमूत्र, मानव मूत्र, गोबर, लेंडी के असंख्य सफल सिद्ध प्रयोग कर लिए हैं एवं मानव प्राणों की रक्षा की है । इस पर अद्भुत साहित्य इन दिनो प्रकाशित हो चुका है, जो तंत्र की सिद्धि का जीवित उदाहरण है । ज्योतिष में पुष्यादि नक्षत्रों के विभिन्न तिथियों, योगों, बारों के जो शुभ अशुभ मुहूर्त - अमृतसिद्धि, राजयोग, यमघंट विषयोग आदि बनते हैंउनके औषधि निर्माण एवं औषधि प्रयोग के जो भिन्न-भिन्न फल मिलते हैं, उन्हें भी अमेरिका, रूस, जर्मनी के किरणरश्मि विज्ञानवेत्ताओं ने सिद्ध कर दिया है एवं हमें स्मरण करा दिया है कि भारतीय ऋषि, चिकित्सक श्राचार्य चरक, सुश्रुत, वाग्भट्ट, धनवंतरि लुकमान, नागार्जुन द्वारा प्रयुक्त शरदऋतु की शरद पूर्णिमा के चद्रमा की अमृत किरणों में निर्मित घी, तेल, अवलेह, चूर्ण, रस, गुटिका - गोलियाँ अद्भुत रोगनाशक शक्तिदायक रसायन हैं । दूध, घी, जटामांसी, अर्जुन, पीपल, बड़, वेल, हरड़, आँवला, कालीमिर्च, खोपरा, गोखरू, मालकांगनी एवं प्रांधीभाड़ा आदि जड़ी बूटियोंवनस्पतियों के प्रभाव और फल विशेष बढ़ जाते हैं। यह अनुभव सिद्ध एवं वैज्ञानिकता पूर्ण सिद्ध हो चुका है। मानसिक रोगियों को केशर, जायपत्री, बच, मुलेठी, कस्तूरी, शंखपुष्पी के प्रयोग - लेप हमें प्रस्तुत ग्रंथ के वशीकरण, मोहन तिलक आदि की सिद्धि एवं वैज्ञानिकता पर सोचने को बाध्य करते हैं । अंगराग - चंदन - केशर - कपूर एवं सुगंधित लेप क्या आकर्षण - विकर्षण, सम्मोहन यथाशक्ति नहीं करते हैं ? इसी प्रकार - नाखून, दांत, बाल, विष आदि के प्रयोग भी यदि मात्रानुकूल हैं तो ये ही विष- अमृतमय होकर असाध्य रोगों से मुक्ति दिलाते हैं | होम्योपैथी की सूक्ष्म चिकित्सा पद्धति क्या हमारी तांत्रिक एवं भैरव पद्मावती कल्पादि के अष्टांग विधानों के समान अत्यन्त सूक्ष्म, बुद्धिपूर्ण, वैज्ञानिक तथा उपयोगी नहीं है ? इसी प्रकार रश्मियों द्वारा - X किरण सूर्य किरण एवं विद्युत किरणों से जो इलाज होता है, उसी प्रकार मनोविचारों से टेलीपैथी, दृष्टिपात, नेत्रक्षेपण, स्वदर्शन आदि के द्वारा भी चिकित्सा उपचार, लाभ सारा संसार ले रहा है ।
SR No.090432
Book TitleBhairava Padmavati Kalpa
Original Sutra AuthorMallishenacharya
AuthorShantikumar Gangwal
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Occult
File Size5 MB
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