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पूणिमा-अमावस्या को चंद्र रश्मियों के प्रभाव से ज्वार-भाटा से उत्पन्न विक्षोभ-पागलपन, हिस्टीरिया, मर्ची, प्रेतबाधादि रोगों के साथ-साथ, कवित्व, कला, मंत्र-तंत्रादि शक्तियों का प्रादुर्भाव आधुनिक-भौतिक विज्ञानवेत्ताओं ने तो सिद्ध ही कर दिया है, किंतु प्रतिमाह कृष्ण पक्ष एवं शुक्ल पक्ष की तिथियों में विलोम प्रतिलोम वृद्धि-ह्रास रूप नख से शिखा तक तथा शिखा से नख तक के विविध अंगों पर प्रभावों का प्राचीन-योग सिद्ध विवेचन विचारने को भी बाध्य कर दिया है।
सठ शलाका पुरुष सोलह कलाधारी श्री कृष्ण की अद्भुत चमकारिक सिद्धियों, ऋद्धियों, वशीकरण रूप परिवर्तन एवं नृत्य-गायन-हरण प्रादि लीलाओं के कारगों पर भी विदेशी मूर्धन्य चितकों ने विचार कर तंत्र मंत्र शक्ति की अलौकिक क्षमता और शक्ति पर प्रकाश डाला है । ये शक्तियाँ मनोविज्ञान परामनोविज्ञान, अलौकिक विद्या विज्ञान, अदृश्य विज्ञान, अव्याख्येय विज्ञान (UNEXPLAINED) नामक ग्रंथों के अध्ययन से समझी जा सकती है।
अंग्रेजी, चीनी, तिब्बती, यूनानी, अरबी, फारसी के अनेक ग्रंथों के अध्ययन, मनन, चिंतन के आधार पर एवं विश्वविख्यात तिब्बती योगी-लेखक टी. लॉग साम राम्पा के Third eye you, FOR EVER, Touch Stone एवं मिश्र के पिरामिडो एवं रहस्य ग्रंथों CHARMS & TALISMAN अादि ग्रंथों के सूक्ष्म पालोड़न, विलोड़न के बाद यह मानने को बाध्य होना पड़ता है कि तिब्बती तंत्र ओझा विद्या कामाक्षा तंत्र सूर्य रश्मि विज्ञान, के पैमोथी तथा होम्योपैथी के (HAIR Trans) बालों पर औषधि प्रयोग एवं पुष्पों द्वारा चिकित्सा के सर्वसम्मत प्रयोग राशिया के चिकित्सा शास्त्री एवं विज्ञान साधकों ने अंतरिक्ष यात्रियों पर प्रयोग करके हमारी भारतीय-तंत्र-विद्या को ही जीवित और सिद्ध कर दिया है । एवं मल्लिषेण की प्रस्तुत कृति को पुष्टि और बल भी प्रदान किया है।
कुछ विद्वान आलोचक शुद्धि-अशुद्धि के नाम पर छिद्रान्वेषण आलोचना करके तंत्र साहित्य और लघुविद्यानुवाद के प्रयोगों पर आक्षेप करते हैं, किन्तु वे यह भूल जाते हैं कि आत्मतत्व और अनात्मतत्व के द्विविध इस संसार में शुद्धि-स्वच्छता तथा सफाई-पवित्रता-मात्र देशकाल एवं भौगोलिक सीमा तथा