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________________ ( ४८ ) CV पूर्व दिशा की पांखुड़ी में, ॐ जयायै स्वाहा । अग्निदिशा की पांखुड़ी में ॐ इम्ल्यू जम्भायै स्वाहा । दक्षिणदिशा के ( दल में ) पांखुड़ी में ॐ विजयायै स्वाहा । नैऋत्य के ( दल में ) पांखुड़ी में ॐ भल्दा मोहाय स्वाहा । पश्चिम दिशा के ( दल में ) पांखुड़ी में, ॐ प्रजितायै स्वाहा । वायव्य दिशा के ( दल में ) पांखुड़ी में ॐ " स्तम्भायै स्वाहा | उत्तर दिशा के ( दल में ) पांखुड़ी में ॐ अपराजितायै स्वाहा । ईशान दिशा के ( दल में ) पांखुड़ी में, ॐ हल्का " स्तम्भिन्यै स्वाहा | इस प्रकार से लिखे । उद्धरितदलेषु ततो मकरध्वजबोजमालिखेच्चतुषु । गजवशकरण निरुद्ध कुर्यात् त्रिर्मायया वेष्टयम् ||३|| [ संस्कृत टोका ] -- 'उद्धरित वलेष ततः' तस्मादष्टपत्र लेखनान्तरं उद्धरित - दलेषु । कति संख्योपेतेषु ? 'चतुषु'' चतुः संख्येषु । 'मकरध्वज बोजमालिखेत्' क्लो कार बीजमालिखेत् । 'गजवशकररनिरुद्ध को फारनिरुद्धम् । त्रिर्मायया वेष्टयम्' पत्र बाह्य ह्रकारे त्रिधा वेष्टितम् । 'कुर्यात् करोतु ॥३॥ [ हिन्दी टीका ] - दिशा विदिशाओं के दलों का मंत्रोद्धार कर लेने पर मकरध्वज बीज को लिखे, मकरध्वज बीज माने क्लीं कार बीज को लिखे फिर अंकुश बीज, यानी क्रौं कार बीज से निरूद्ध करे, फिर ही कार रूप मायाबीज से तीनबार वेष्टित करे ॥३॥ सूर्ये सुरभिद्रव्यैविलिख्य परिवेष्टय रक्तसूत्रेण । निक्षिप्य सुल्वभाण्डे ? मधुपुरों मोहयश्यबलाम् ||४|| [ संस्कृत टीका ] - 'भूर्ये' सूर्यपत्रे । 'सुरभिद्रव्यैः' कुङ माविसुगन्धद्रव्यैः । 'विलिख्य' एतद् मन्त्रं लिखित्वा । परिवेष्टय रक्तसूत्रेण' रक्तसूत्रेण वेष्टयित्वा । 'निक्षिप्य' संस्थाप्य । क्व ? 'सुत्वभाण्डे' प्रपववभाण्डे । कथम्भूते ? मधुपूर्ण' माक्षिक पूर्णे । 'मोहयत्यबलाम्' अबला वनिता तां मोहयति ॥४॥ श्रस्य मूल मन्त्रोद्वारः : १ कनक इति पाठः ।
SR No.090432
Book TitleBhairava Padmavati Kalpa
Original Sutra AuthorMallishenacharya
AuthorShantikumar Gangwal
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Occult
File Size5 MB
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