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( ४६ ) उँ पल्ब्यू क्लीजये ! विजये ! अजिसे ! अपराजिते ! म्यू जम्मे ! भव्यू मोहे ! म्म्ल्यू स्तम्भे ! हम्ल्यू स्तम्भिनि ! क्ली ह्री को वषट् ।। मोहन क्ली रञ्जिकायन्त्रम् ॥
[हिन्दी टीका]-इस यंत्र को भोजपत्र पर सुगन्धित द्रव्यों से लिखकर लाल धागों से यंत्र को लपेटकर मधु से भरे हुये कुम्हार के कच्चे घड़े में रखने से स्त्री को मोहित करता है ।।४।। (१) मंत्र का उद्धार :-ॐ क्षम्ल्व्य क्लीजये विजये, अजिते, अपराजिते इम्ल्य
जम्भे भव्य मोहे म्म्य स्तम्भेसब्यस्तम्भिनि बली'ह्रीं क्रो वषट् ।
इस प्रकार मंत्र का श्वेताम्बर प्रति में भी मंत्र पाठ है। (२) दूसरे नं० का मंत्रपाठ इस प्रकार है, स्तम्भिनी के बाद अमुक मोहय २ मम्
वश्यं कुरु २ स्वाहा । यह पाठ दिगम्बर हस्तलिखित प्रति में है । (३) तीसरे नं० मंत्रपाठ इस प्रकार है, स्तम्भिनि के बाद अमुकं मोहय २ मम वश्यं
कुरु २ प्रां ह्रीं क्रों वषट् । यह पाठ कापड़िया जी के यहाँ से प्रकाशित भैरवपद्मावतीकल्प में है।
इन तीनों में मेरे निर्णयानुसार यह मंत्र इस प्रकार बनेगा।
ॐक्षाल्ल्य* क्ली जये विजये अजिते अपराजिते इमलव्य" जम्भे भव्य मोहे म्म्ल्यास्तम्भे झल्व्य स्तम्भिनि अमुकं मोहय २ मम वश्यं कुरु २ (आँ) क्लीं ह्री को वषट् ।
इति मोहन क्ली रजिका यंत्र । स्त्रीकपाले लिखेद् यन्त्रं क्ली स्थाने भुवनाधिपम् । त्रिसन्ध्यं तापयेद् रामाकृष्टिः स्यात् खादिराग्निना ॥५॥
[संस्कृत टीका]-'स्त्रीकपाले' वनिताकपाले । 'लिखेद् यन्त्रं प्राक्कथितयन्त्रं लिखेत् । क्लो स्थाने' क्लो कार स्थाने । कम् ? 'भुवनाधिपम्' ही कार लिखेत् । "त्रिसन्ध्यं त्रिकालम् । 'सापयेत्' तापनं कुर्यात् । 'रामाकृष्टिः स्यात्' वनिता कर्षणं भवेत् । केन ? 'खादिराग्निना' खदिरकाष्टाग्निना । ठ्याकर्षणे ही रञ्जिकायन्त्रम् ॥५॥
[हिन्दी टीका]-स्त्री के कपाल (खोपड़ी) पर, इस यंत्र को सुगन्धित द्रव्यों से लिखे, पहले लिखे यंत्रानुसार, मात्र क्ली के स्थान पर भुवनाधिप बीज लिखे, यानी ही कार बीज लिखे, फिर खदिर (खोर) की अग्नि से त्रिकाल उस यंत्र को तपाये तो स्त्री का आकर्षरण होता है ।।।। स्त्री आकर्षण का यह ह्रीं रंजिकायंत्र है चित्र नं० ७ देखे ।